राजनीतिक परिवर्तनों में ग्रह-प्रभाव

राजनीतिक परिवर्तनों में ग्रह-प्रभाव

राजनीतिक परिवर्तनों में ग्रह-प्रभाव

राजनीति केवल विचारधारा या योजनाओं का खेल नहीं है — यह ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं, ग्रहों की गति और समय की चाल से भी गहराई से जुड़ी होती है। जब किसी देश या राज्य की राजनीतिक स्थिति बदलती है, तो उसके पीछे केवल मानव निर्णय नहीं, बल्कि ग्रहों की चाल और दशा परिवर्तन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण देश की कुंडली, शासकों की कुंडली और ग्रहों के सामूहिक प्रभावों से किया जा सकता है।

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ग्रह राजनीतिक उतार-चढ़ाव को प्रभावित करते हैं, कौन से ग्रह सत्ता परिवर्तन के संकेतक हैं, और वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों में कौन से ग्रह मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।

राजनीति और ग्रहों का संबंध

प्राचीन काल से ही भारत में राज्य या राजसत्ता की स्थिति को देखने के लिए “राज्य ज्योतिष” का प्रयोग किया जाता था। इसमें ग्रहों की स्थिति से यह पता लगाया जाता था कि किसी राजा का शासन कितना स्थिर रहेगा, कौन-से वर्ष में युद्ध, परिवर्तन या क्रांति की संभावना है।

बृहत्संहिता, जातक पारिजात, और बृहस्पति संहिता जैसे ग्रंथों में भी यह उल्लेख मिलता है कि जब सूर्य, शनि, मंगल, राहु और बृहस्पति विशेष योग बनाते हैं, तो राजनीतिक परिस्थितियाँ पूरी तरह बदल सकती हैं।

प्रमुख ग्रह और राजनीति पर उनका प्रभाव

सूर्य – सत्ता और नेतृत्व का प्रतीक

सूर्य राजनीति का प्रमुख ग्रह है। यह राजा, सत्ता, सरकार, और सम्मान का द्योतक माना गया है।
जब सूर्य बलवान होता है, तो राजनीतिक स्थिरता बनी रहती है और देश का नेतृत्व मजबूत रहता है।
लेकिन जब सूर्य अशुभ दृष्टि में आ जाता है या शनि, राहु से प्रभावित होता है, तो सत्ता संकट, विरोध, और नेतृत्व परिवर्तन जैसी स्थितियाँ बनती हैं।

उदाहरण के तौर पर —
जब सूर्य शनि या राहु के साथ योग बनाता है, तो जनता और सरकार के बीच असंतोष बढ़ता है।

शनि – जनसमर्थन और परिवर्तन का कारक

शनि को जनता, श्रमिक वर्ग और सामाजिक संरचना का ग्रह माना गया है।
जब शनि अपनी साढ़ेसाती या ढैय्या काल में प्रवेश करता है, तो वह सत्ता की नींव को हिला सकता है।
यह ग्रह जनता की आवाज़ को प्रबल करता है और कई बार पुरानी व्यवस्था के विरुद्ध नए नेतृत्व का उदय करवाता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, जब शनि और राहु एक साथ प्रभावी होते हैं, तो सामाजिक क्रांति या राजनीतिक आंदोलन की संभावना बढ़ जाती है।

मंगल – संघर्ष और निर्णय का ग्रह

मंगल राजनीति में शक्ति, निर्णय क्षमता और संघर्ष का प्रतीक है।
जब मंगल उच्च स्थिति में होता है, तो सरकारें साहसिक निर्णय लेती हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होती है।
लेकिन जब मंगल अशुभ स्थिति में आता है, तो राजनीतिक टकराव, हिंसा, विरोध आंदोलन और आंतरिक तनाव बढ़ जाते हैं।

राहु – भ्रम और अप्रत्याशित घटनाओं का ग्रह

राहु राजनीति में अनपेक्षित बदलावों का प्रतीक है।
यह सत्ता परिवर्तन, नए गठजोड़, या किसी नेता के अचानक उदय का कारण बन सकता है।
राहु जब सूर्य या चंद्र पर प्रभाव डालता है, तो जनता की भावना में अस्थिरता आती है — जिससे चुनावी परिणाम अप्रत्याशित हो सकते हैं।

बृहस्पति – नीति, धर्म और न्याय का ग्रह

बृहस्पति जब मजबूत होता है, तो शासन में न्याय, नीतिपरता और शिक्षा से जुड़े निर्णय लिए जाते हैं।
लेकिन जब यह नीच या शनि-राहु से प्रभावित हो, तो नीति-निर्धारण में भ्रम और न्याय प्रणाली में असंतुलन देखने को मिलता है।

वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों में ग्रहों की भूमिका

वर्तमान समय में विश्व राजनीति में जो तेजी से बदलाव देखे जा रहे हैं — जैसे सरकारों का बदलना, विरोध प्रदर्शन, या जन असंतोष — यह सब ग्रहों की संयुक्त चाल से भी जुड़ा हुआ है।

इंदौर के ज्योतिष के अनुसार, इस समय शनि कुंभ राशि में है और राहु मीन राशि में — यह स्थिति सामाजिक परिवर्तन, सत्ता में अस्थिरता और जनता की नई चेतना का संकेत देती है।
इसके साथ ही, बृहस्पति और सूर्य के बीच बन रहा योग कई देशों में नए नेतृत्व के उदय की संभावना को दर्शाता है।

भारत की दृष्टि से भी यह समय राजनीतिक परिवर्तन और नई नीतियों के जन्म का काल है।
शनि का प्रभाव जनमानस को सक्रिय कर रहा है, जबकि राहु नई सोच और असंतोष को जन्म दे रहा है।

ग्रह गोचर और चुनावी परिणाम

राजनीतिक विश्लेषण में ग्रह गोचर का बहुत महत्व होता है।
जब किसी देश की कुंडली में सूर्य और शनि के बीच तनाव बनता है, तो चुनावों के बाद सरकार में परिवर्तन देखने को मिलता है।
चंद्रमा और राहु के योग से जनता का मूड बदलता है, जबकि बृहस्पति की दृष्टि से न्याय और स्थिरता लौटती है।

एस्ट्रोलॉजर मनोज साहू जी का मानना है कि जब बृहस्पति पंचम या नवम भाव में शुभ स्थिति में होता है, तो देश को सशक्त नेतृत्व प्राप्त होता है। वहीं शनि का चौथे भाव में प्रवेश जनता के असंतोष को जन्म देता है।

ज्योतिषीय दृष्टि से राजनीतिक स्थिरता के संकेत

  • सूर्य मजबूत हो – नेतृत्व में स्पष्टता और नीतिगत दृढ़ता आती है।
  • शनि शुभ दृष्टि में हो – जनता और सरकार में संतुलन बना रहता है।
  • बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में हो – धर्म, नीति और न्याय का पालन होता है।
  • राहु-केतु नियंत्रित हों – भ्रम और अस्थिरता दूर होती है।

राजनीति घटनाएँ केवल इंसानी प्रयासों से नहीं, बल्कि ग्रहों की चाल और कालचक्र से भी गहराई से प्रभावित होती हैं।
ज्योतिष शास्त्र हमें यह सिखाता है कि सत्ता का उत्थान और पतन समय के अनुसार ही होता है।
यदि हम ग्रहों की चाल को समझें, तो हम आने वाले परिवर्तनों की दिशा का अनुमान लगा सकते हैं।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं —

राजनीति में जो भी परिवर्तन होते हैं, वे ब्रह्मांडीय संतुलन की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। ग्रह हमें केवल संकेत देते हैं, निर्णय मनुष्य को ही लेना होता है।

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