कुंडली में प्रेम और विवाह के योग कैसे पहचानें?
प्रेम और विवाह हर व्यक्ति के जीवन का सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण अध्याय होते हैं। ये केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि आत्माओं का संबंध होते हैं जो ग्रहों और नक्षत्रों द्वारा नियोजित होता है। कई लोग अपने जीवनसाथी से जल्दी मिल जाते हैं, जबकि कुछ को देर लगती है या बार-बार असफल संबंधों का सामना करना पड़ता है। यह सब केवल भाग्य या परिस्थिति का परिणाम नहीं होता, बल्कि इसके पीछे ग्रहों की स्थिति और योगों का गहरा संबंध होता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, प्रेम और विवाह के योग को समझने के लिए व्यक्ति की जन्म कुंडली का गहराई से अध्ययन करना आवश्यक होता है।
कुंडली में प्रेम और विवाह का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की कुंडली में पंचम भाव (5th house) और सप्तम भाव (7th house) प्रेम और विवाह से संबंधित प्रमुख भाव माने जाते हैं। पंचम भाव रोमांस, आकर्षण, और प्रेम संबंधों को दर्शाता है, जबकि सप्तम भाव वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी और दांपत्य सुख का प्रतीक है। जब ये दोनों भाव शुभ ग्रहों से युक्त होते हैं या शुभ दृष्टि में होते हैं, तब प्रेम और विवाह के अच्छे योग बनते हैं।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि जिन व्यक्तियों की कुंडली में इन भावों के स्वामी मजबूत होते हैं, वे प्रेम में सफल होते हैं और विवाह के बाद भी स्थिर, सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। इसके विपरीत, यदि इन भावों में अशुभ ग्रहों की स्थिति हो या राहु-केतु, शनि, मंगल जैसे ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रेम और विवाह में रुकावटें आती हैं।
पंचम भाव और प्रेम के योग
कुंडली का पंचम भाव व्यक्ति के दिल से जुड़ा होता है। यह भाव जितना मजबूत होगा, व्यक्ति उतना ही भावनात्मक और प्रेमपूर्ण स्वभाव का होगा। यदि पंचम भाव में शुक्र, चंद्रमा, या बुध जैसे ग्रह उपस्थित हों या इन ग्रहों की शुभ दृष्टि हो, तो व्यक्ति को सच्चा प्रेम प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
उदाहरण के लिए:
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शुक्र पंचम भाव में होने पर व्यक्ति आकर्षक, रोमांटिक और प्रेम में भाग्यशाली होता है।
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चंद्रमा इस भाव में होने पर व्यक्ति को भावनात्मक रूप से संवेदनशील और प्रेमपूर्ण साथी मिलता है।
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बुध की स्थिति शुभ हो तो व्यक्ति अपने प्रेम संबंधों में संवाद और समझ को महत्व देता है।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि पंचम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो और राहु-केतु या शनि का प्रभाव न हो, तो ऐसे लोग अपने प्रेम संबंधों को सफल विवाह में परिवर्तित कर लेते हैं।
सप्तम भाव और विवाह के योग
सप्तम भाव (7th house) कुंडली का विवाह भाव कहलाता है। यह व्यक्ति के जीवनसाथी, वैवाहिक जीवन और दांपत्य सुख की स्थिति को दर्शाता है। इस भाव में स्थित ग्रह, इसकी दृष्टि और भाव का स्वामी व्यक्ति के विवाह की प्रकृति को तय करते हैं।
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यदि सप्तम भाव का स्वामी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति या चंद्रमा के साथ हो, तो विवाह में सुख और स्थिरता मिलती है।
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यदि मंगल, राहु, शनि जैसे ग्रह इस भाव में हों, तो विवाह में विलंब या असहमति की स्थिति बन सकती है।
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बृहस्पति का सप्तम भाव पर दृष्टि डालना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि यह विवाह को स्थिर और सफल बनाता है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि जिनकी कुंडली में सप्तम भाव मजबूत होता है, उन्हें योग्य और समझदार जीवनसाथी की प्राप्ति होती है, जो जीवनभर सहयोगी बनकर साथ चलता है।
प्रेम विवाह और अरेंज मैरिज के ज्योतिषीय संकेत
प्रेम विवाह के योग और अरेंज मैरिज के योग दोनों कुंडली में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
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प्रेम विवाह के योग तब बनते हैं जब पंचम भाव और सप्तम भाव के बीच संबंध हो, या शुक्र, मंगल और राहु का प्रभाव साथ आए।
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यदि व्यक्ति की कुंडली में पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में चला जाए, तो यह प्रेम विवाह का स्पष्ट संकेत होता है।
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वहीं, अरेंज मैरिज के योग तब बनते हैं जब विवाह भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो लेकिन पंचम भाव से संबंध न बने।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि राहु का प्रभाव कई बार सामाजिक बंधनों को तोड़ता है, जिसके कारण प्रेम विवाह या अंतरजातीय विवाह के योग मजबूत हो जाते हैं। वहीं मंगल की स्थिति व्यक्ति को अपने प्रेम के लिए दृढ़ बनाती है।
विलंबित विवाह के कारण
कई बार विवाह में अनावश्यक विलंब होता है, जबकि व्यक्ति विवाह के योग्य होता है। इसके पीछे ग्रहों की भूमिका होती है।
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यदि शनि सप्तम भाव में हो या इसकी दृष्टि उस भाव पर हो, तो विवाह में विलंब होता है।
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मंगल दोष (मांगलिक योग) होने पर भी विवाह में बाधाएँ आती हैं।
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केतु की स्थिति विवाह संबंधों में अस्थिरता पैदा कर सकती है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, जब दशा-अंतर्दशा में विवाह संबंधी ग्रह सक्रिय नहीं होते, तब विवाह का समय विलंबित हो जाता है। ऐसे में शुभ ग्रहों की शक्ति बढ़ाने के लिए उपासना और उपाय आवश्यक होते हैं।
सफल विवाह के लिए ग्रहों की अनुकूलता
विवाह की सफलता केवल प्रेम पर निर्भर नहीं करती, बल्कि ग्रहों की अनुकूलता पर भी आधारित होती है। गुण मिलान (कुंडली मिलान) के समय वर-वधू की कुंडलियों के ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है।
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यदि नाड़ी दोष या भकूट दोष उपस्थित हो, तो विवाह में मतभेद की संभावना रहती है।
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यदि ग्रह मिलान शुभ हो, तो दांपत्य जीवन सुखद रहता है।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि विवाह से पहले कुंडली मिलान करवाना अनिवार्य है, क्योंकि यह जीवनभर के सुख-दुख को प्रभावित करता है।
प्रेम और विवाह के योग को मजबूत करने के उपाय
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शुक्र को मजबूत करें — शुक्रवार को माता लक्ष्मी की पूजा करें, सफेद वस्त्र पहनें और सुगंधित दान करें।
चंद्रमा के लिए उपाय — सोमवार को दूध का दान करें, शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
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मंगल दोष शांति — हनुमान जी की उपासना करें, मंगलवार को लाल वस्त्र या तांबा दान करें।
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राहु-केतु शांति — अमावस्या को नाग देवता की पूजा करें और तिल-तेल का दीपक जलाएं।
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विवाह योग सक्रिय करने के लिए मंत्र — “ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नमः” या “ॐ शुक्राय नमः” का नियमित जाप करें।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यदि व्यक्ति इन उपायों को श्रद्धा से करे और अपने ग्रहों को संतुलित रखे, तो जीवन में प्रेम और विवाह दोनों का सुख प्राप्त होता है।
कुंडली में प्रेम और विवाह के योग व्यक्ति के जीवन के भावनात्मक और सामाजिक पहलू को दर्शाते हैं। यदि पंचम और सप्तम भाव शुभ ग्रहों से प्रभावित हों, तो प्रेम और विवाह दोनों सफल होते हैं। वहीं, अशुभ ग्रहों की स्थिति या दोष होने पर संबंधों में रुकावटें आती हैं।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि सही समय पर ग्रहों की दशा को समझना,कुंडली का विश्लेषण करवाना और उचित उपाय अपनाना प्रेम और विवाह दोनों को स्थिर और सुखद बनाता है। ज्योतिष केवल भविष्य बताने का विज्ञान नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने का साधन है। जब व्यक्ति अपने ग्रहों के संकेतों को समझता है, तो प्रेम और विवाह दोनों जीवन में सुख और संतोष का माध्यम बन जाते हैं।

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