चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना की विधि

चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना की विधि

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चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना की विधि

चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म में एक प्रमुख पर्व है, जिसे वसंत ऋतु की शुरुआत में मनाया जाता है। यह नौ दिनों का त्योहार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना और साधना के लिए समर्पित होता है। यह पर्व आत्मिक शक्ति, भक्ति, और सकारात्मक ऊर्जा को जागृत करने का समय होता है।

इस लेख में, हम चैत्र नवरात्रि के शुभ मुहूर्त, कलश स्थापना की विधि, और इससे जुड़े ज्योतिषीय महत्व को विस्तार से समझेंगे।

चैत्र नवरात्रि का महत्व

चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है। यह नववर्ष की शुरुआत का संकेत भी है।

  • धार्मिक महत्व: यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री—की आराधना के लिए मनाया जाता है।

  • आध्यात्मिक महत्व: नवरात्रि का समय ध्यान, योग, और साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। यह आत्मा की शुद्धि और मन की शांति के लिए आदर्श समय है।

चैत्र नवरात्रि के शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ और समापन

  • प्रारंभ तिथि: 29 मार्च 2025 (शुक्रवार)

  • समापन तिथि: 7 अप्रैल 2025 (सोमवार)

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

कलश स्थापना (घट स्थापना) नवरात्रि का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्म होता है। इसे अभिजीत मुहूर्त या प्रतिपदा तिथि के शुभ समय पर किया जाता है।

  • घट स्थापना का शुभ समय:

    • प्रातः काल: 06:20 से 07:40 बजे तक

    • अभिजीत मुहूर्त: 12:10 से 12:50 बजे तक

नोट: स्थान और पंचांग के अनुसार समय में भिन्नता हो सकती है।

प्रतिपदा तिथि

  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 28 मार्च 2025, रात 10:10 बजे

  • प्रतिपदा तिथि समाप्त: 29 मार्च 2025, रात 11:30 बजे

कलश स्थापना की विधि

कलश स्थापना की विधि

कलश स्थापना नवरात्रि का प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसे सही विधि और शुद्धता के साथ करना चाहिए।

आवश्यक सामग्री

  • मिट्टी का कलश या तांबे का कलश

  • गंगाजल

  • आम के पत्ते

  • नारियल (लाल कपड़े में लिपटा हुआ)

  • लाल कपड़ा या चुनरी

  • साबुत चावल (अक्षत)

  • सुपारी

  • लाल धागा (मौली)

  • दुर्गा माता की मूर्ति या चित्र

  • मिट्टी और जौ के बीज

विधि
  • स्थान की शुद्धि:

    • सबसे पहले घर के मंदिर या पूजा स्थान को साफ करें।

    • गंगाजल का छिड़काव करके स्थान को पवित्र करें।

  • मिट्टी और जौ का उपयोग:

    • पूजा स्थान पर एक मिट्टी का पात्र रखें।

    • उसमें शुद्ध मिट्टी डालें और उसमें जौ के बीज बो दें।

  • कलश तैयार करें:

    • कलश को गंगाजल से भरें।

    • उसमें सुपारी, साबुत चावल, सिक्का, और गंगाजल डालें।

    • कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें।

    • नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें।

  • मौली बांधें:

    • कलश के गले पर मौली (लाल धागा) बांधें।

  • पूजन आरंभ करें:

    • दीपक जलाएं और दुर्गा माता की मूर्ति या चित्र के सामने कलश को स्थापित करें।

    • दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य, या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।

    • मां दुर्गा को फूल, माला, नारियल, और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।

कलश स्थापना के ज्योतिषीय नियम

  • दिशा का ध्यान रखें:

    • कलश को उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में स्थापित करना शुभ माना जाता है।

    • यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का कारक है।

  • ग्रह स्थिति का ध्यान:

    • इस दिन ग्रहों की स्थिति शुभ होनी चाहिए।

    • विशेषकर चंद्रमा और सूर्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कलश स्थापना करनी चाहिए।

  • शुद्धता का ध्यान:

    • पूजा के समय मन और शरीर की शुद्धता आवश्यक है।

    • नकारात्मक विचारों से बचें।

चैत्र नवरात्रि के नौ दिन और उनकी पूजा विधि

पहला दिन: शैलपुत्री

  • देवी शैलपुत्री की पूजा करें और सफेद फूल अर्पित करें।

  • इस दिन मां दुर्गा से आत्मिक शांति का आशीर्वाद मांगें।

दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी

  • देवी ब्रह्मचारिणी को चीनी और मिश्री का भोग लगाएं।

  • यह दिन तप और संयम का प्रतीक है।

तीसरा दिन: चंद्रघंटा

  • देवी चंद्रघंटा की पूजा करें और उन्हें दूध से बनी मिठाई अर्पित करें।

चौथा दिन: कूष्मांडा

  • देवी कूष्मांडा को मालपुआ या मिष्ठान अर्पित करें।

पांचवां दिन: स्कंदमाता

  • देवी स्कंदमाता की पूजा करें और केले का भोग लगाएं।

छठा दिन: कात्यायनी

  • देवी कात्यायनी को शहद अर्पित करें।

सातवां दिन: कालरात्रि

  • देवी कालरात्रि की पूजा करें और उन्हें गुड़ अर्पित करें।

आठवां दिन: महागौरी

  • देवी महागौरी को नारियल का भोग लगाएं।

नौवां दिन: सिद्धिदात्री

  • देवी सिद्धिदात्री की पूजा करें और उन्हें तिल और गुड़ का भोग अर्पित करें।

नवरात्रि में क्या करें और क्या न करें

नवरात्रि में क्या करें और क्या न करें

क्या करें

  • प्रतिदिन देवी दुर्गा की पूजा करें।

  • फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।

  • मंत्र जाप और ध्यान करें।

  • नौ कन्याओं का पूजन करें।

क्या न करें

  • मांसाहार और शराब का सेवन न करें।

  • झूठ, क्रोध, और नकारात्मक विचारों से बचें।

  • दिन में सोने से बचें।

  • पूजा स्थल को गंदा न रखें।

चैत्र नवरात्रि का ज्योतिषीय लाभ

चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा करने से कुंडली के ग्रह दोष शांत होते हैं।

  • मंगल दोष: देवी की पूजा से मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।

  • राहु और केतु: दुर्गा सप्तशती का पाठ राहु और केतु के अशुभ प्रभावों को शांत करता है।

  • धन और समृद्धि: यह पर्व धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि आत्मिक उन्नति और शुद्धि का समय है। कलश स्थापना और नौ दिनों की पूजा विधि का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। यदि आप नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा या कुंडली संबंधी समस्याओं का समाधान चाहते हैं, 


अनिल शर्मा (सियागंज, इंदौर)

पिछले साल मैंने चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना का सही तरीका नहीं अपनाया था, लेकिन इस बार एस्ट्रोलॉजर साहू जी से परामर्श लेने के बाद मैंने सभी विधियों का पालन किया। उन्होंने शुभ मुहूर्त, मंत्र जाप और पूजन की सही विधि बताई, जिससे पूरे नवरात्रि में सकारात्मक ऊर्जा बनी रही। धन, सुख-शांति और समृद्धि में बढ़ोतरी हुई। सच में, इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी साहू जी की सलाह अमूल्य है!"

राधा गुप्ता (बंगाली कॉलोनी, इंदौर)

चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना की सही विधि और शुभ मुहूर्त को लेकर मेरे मन में कई सवाल थे। मैंने एस्ट्रोलॉजर साहू जी से संपर्क किया और उन्होंने मुझे विस्तार से बताया कि किस दिशा में कलश रखना चाहिए, कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए और कौन-से उपाय करने से देवी की कृपा अधिक प्राप्त होती है। उनके मार्गदर्शन से इस बार नवरात्रि का अनुष्ठान अत्यंत शुभ और फलदायी रहा। इंदौर में यदि किसी को सटीक और प्रभावी ज्योतिषीय सलाह चाहिए, तो साहू जी से जरूर मिलें!"

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Astrologer Sahu Ji
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