ग्रहों और चक्रों का संबंध:
मानव शरीर केवल हड्डियों, मांसपेशियों और नसों से बना एक भौतिक ढांचा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा, चेतना और सूक्ष्म प्रवाहों का एक ऐसा अदृश्य नेटवर्क है जो जीवन के हर अनुभव को नियंत्रित करता है। वैदिक परंपरा में जिस प्रकार ग्रहों को हमारे जीवन की ऊर्जा का चालक माना जाता है, उसी प्रकार योग और तंत्र परंपरा में चक्रों को मानव शरीर की ऊर्जा का केंद्र बताया गया है। जब ग्रहों की शक्ति और चक्रों की ऊर्जा आपस में संतुलित रहती है, तब व्यक्ति का मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक और भौतिक जीवन स्थिर, संतुलित और उन्नत होता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि ग्रह और चक्र दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। ग्रहों की स्थिति चक्रों को प्रभावित करती है और चक्रों का असंतुलन ग्रहों के फल को बदल सकता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी यह भी समझाते हैं कि जब चक्र सक्रिय होते हैं, तब ग्रहों के शुभ फल और अधिक शक्तिशाली रूप में जीवन में प्रकट होते हैं। यह संबंध इतना गहरा और वैज्ञानिक है कि इसे समझने से व्यक्ति अपने जीवन को अधिक संतुलित बना सकता है।
ग्रह और चक्र: ऊर्जा का पारस्परिक संबंध
वेदों में कहा गया है कि ब्रह्मांड और मानव शरीर एक समान हैं। जिस प्रकार ब्रह्मांड में ग्रह ऊर्जा का विस्तार करते हैं, उसी प्रकार शरीर के चक्र उस ऊर्जा को ग्रहण, रूपांतरित और उपयोग करते हैं। कुल सात प्रमुख चक्रों को शरीर में ऊर्जा का केंद्र माना जाता है और हर चक्र का एक संबंधित ग्रह होता है। ग्रहों के शुभ या अशुभ होने पर चक्रों की ऊर्जा प्रवाह बदलता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि ग्रह मजबूत हों और चक्र सक्रिय हों, तो व्यक्ति में अद्भुत मानसिक शक्ति, भावनात्मक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति देखी जाती है।इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ग्रहों के दोष चक्रों में अवरोध पैदा करते हैं, जिससे जीवन में बाधाएं, तनाव और शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
मूलाधार चक्र और मंगल ग्रह का संबंध
मूलाधार चक्र, जिसे रूट चक्र भी कहा जाता है, मानव शरीर का आधार माना जाता है। यह चक्र सुरक्षा, स्थिरता, अस्तित्व और शक्ति का प्रतीक है। मूल रूप से यह चक्र मंगल ग्रह से जुड़ा हुआ है। जब मंगल शुभ स्थिति में होता है, तब व्यक्ति के भीतर साहस, आत्मविश्वास और स्थिर मानसिकता विकसित होती है। मूलाधार चक्र भी संतुलित रहता है, जिससे जीवन में भय कम होता है और जीवटता बढ़ती है। लेकिन जब मंगल अशुभ हो या मंगल दोष हो, तब मूलाधार चक्र में अवरोध उत्पन्न होते हैं। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को अक्सर असुरक्षा, बेचैनी, क्रोध, तनाव और भय रहता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी यह बताते हैं कि सही ध्यान, मंत्र जाप और मंगल शांति उपायों से मूलाधार चक्र पुनः सक्रिय किया जा सकता है।
स्वाधिष्ठान चक्र और शुक्र ग्रह का संबंध
स्वाधिष्ठान चक्र जल तत्व का चक्र माना जाता है और इसका संबंध भावनाओं, रचनात्मकता, आकर्षण, संबंधों और आनंद से है। यह चक्र शुक्र ग्रह द्वारा नियंत्रित होता है। शुक्र जब कुंडली में मजबूत हो तो व्यक्ति भावनात्मक रूप से संतुलित रहता है, रिश्ते मधुर होते हैं और रचनात्मकता बढ़ती है। स्वाधिष्ठान चक्र भी खुला और सक्रिय रहता है। लेकिन जब शुक्र अशुभ हो, तब यह चक्र अवरुद्ध होने लगता है। इसका प्रभाव व्यक्ति के रिश्तों, आनंद, आकर्षण और मनोवैज्ञानिक स्थिरता पर पड़ता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि शुक्र की खराब स्थिति से व्यक्ति भावनात्मक अस्थिरता, रिश्तों में तनाव और रचनात्मकता की कमी महसूस कर सकता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ध्यान, जल तत्व के अभ्यास, रंग चिकित्सा और शुक्र से जुड़े उपाय इस चक्र को संतुलित करने में मदद करते हैं।
मणिपुर चक्र और सूर्य ग्रह का संबंध
मणिपुर चक्र अग्नि तत्व का चक्र है और इसका संबंध आत्मविश्वास, शक्ति, इच्छाशक्ति और निर्णय क्षमता से है। यह चक्र सूर्य ग्रह से जुड़ा हुआ है। सूर्य जब शुभ होता है, तब मणिपुर चक्र अत्यंत सक्रिय और संतुलित रहता है। ऐसे व्यक्ति में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और उत्साह बढ़ता है। लेकिन जब सूर्य कमजोर हो या पीड़ित हो, तब मणिपुर चक्र कमजोर पड़ने लगता है। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में आत्मसम्मान की कमी, भय, अनिर्णय, थकावट और मानसिक दबाव बढ़ने लगता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि सूर्य के दोष मणिपुर चक्र में अवरोध पैदा करते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि सूर्य मंत्र, ध्यान और अग्नि तत्व के अभ्यास से इस चक्र को पुनः सक्रिय किया जा सकता है।
अनाहत चक्र और चंद्रमा का संबंध
अनाहत चक्र, जिसे हृदय चक्र भी कहा जाता है, प्रेम, करुणा, क्षमा और भावनात्मक संतुलन का केंद्र है। यह चक्र चंद्रमा की ऊर्जा से प्रभावित होता है। चंद्रमा मन और भावनाओं का कारक है, इसलिए जब यह ग्रह शुभ होता है, तब अनाहत चक्र खुला रहता है और व्यक्ति अपने रिश्तों में प्रेम, दया और संतुलन महसूस करता है। लेकिन जब चंद्रमा कमजोर हो या राहु-केतु से प्रभावित हो, तब हृदय चक्र में रुकावट आ जाती है। व्यक्ति भावनात्मक रूप से अस्थिर, संवेदनशील और असुरक्षित बनने लगता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि चंद्रमा के कमजोर होने पर हृदय क्षेत्र में भी ऊर्जा का प्रवाह रुकने लगता है, जिससे व्यक्ति मानसिक तनाव, रिश्तों में दूरी और भावनात्मक बोझ महसूस करता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि चंद्रमा मंत्र, चंद्र शांति उपाय और ध्यान द्वारा इस चक्र को संतुलित किया जा सकता है।
विशुद्ध चक्र और बुध ग्रह का संबंध
विशुद्ध या कंठ चक्र संवाद, अभिव्यक्ति और सत्य बोलने की शक्ति का प्रतीक है। यह चक्र बुध ग्रह द्वारा संचालित होता है। बुध जब कुंडली में मजबूत हो, तब विशुद्ध चक्र संतुलित रहता है। व्यक्ति स्पष्ट बोलता है, समझदारी से बात करता है और निर्णय लेते समय तार्किक दृष्टिकोण अपनाता है। लेकिन जब बुध अशुभ हो, तब कंठ चक्र में समस्या आने लगती है। व्यक्ति सही तरीके से बात नहीं कर पाता, गलतफहमियां बढ़ जाती हैं और संकोच की भावना विकसित होती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि बुध की खराब स्थिति संवाद की ऊर्जा को बाधित कर देती है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, ध्यान, नीले रंग के अभ्यास और बुध शांति उपाय विशुद्ध चक्र को पुनः सक्रिय करते हैं।
आज्ञा चक्र और गुरु ग्रह का संबंध
आज्ञा चक्र भौंहों के बीच स्थित ऊर्जा केंद्र है, जिसका संबंध अंतर्ज्ञान, ज्ञान, विवेक और समझ से है। यह चक्र बृहस्पति ग्रह द्वारा नियंत्रित होता है। बृहस्पति जब शुभ होता है, तब आज्ञा चक्र खुला रहता है और व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता आती है। यह समय ज्ञान प्राप्ति, आध्यात्मिकता, सत्य की खोज और सही निर्णय क्षमता को बढ़ाता है। लेकिन जब गुरु ग्रह कमजोर हो या पीड़ित हो, तब आज्ञा चक्र अवरुद्ध हो जाता है। व्यक्ति में भ्रम, निर्णय लेने में कठिनाई, मानसिक अस्पष्टता और गलत दिशा में कदम बढ़ाने की प्रवृत्ति बढ़ती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि गुरु के दोषों से व्यक्ति का ज्ञान और विवेक कम पड़ने लगता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि गुरु मंत्र, ध्यान और सत्य के अभ्यास से आज्ञा चक्र को पुनः संतुलित किया जा सकता है।
सहस्रार चक्र और शनि तथा केतु का संबंध
सहस्रार चक्र शरीर का सबसे ऊँचा और आध्यात्मिक चक्र माना जाता है। इसका संबंध चेतना, आध्यात्मिक जागरण, मोक्ष और ब्रह्मांडीय ऊर्जा से है। सहस्रार चक्र मुख्य रूप से शनि और केतु ग्रहों से प्रभावित होता है। शनि व्यक्ति को अनुशासन, संयम और धैर्य सिखाता है। केतु वैराग्य, मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है। जब शनि और केतु शुभ होते हैं, तब सहस्रार चक्र खुला रहता है और व्यक्ति आत्मिक शांति और आध्यात्मिक जागृति का अनुभव करता है। लेकिन जब ये ग्रह अशुभ हों, तब यह चक्र बंद हो जाता है। इससे व्यक्ति में अस्थिरता, भ्रम, मानसिक तनाव और आध्यात्मिक विचलन बढ़ने लगता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि शनि-केतु की खराब स्थिति व्यक्ति को आंतरिक संघर्ष और असंतुष्टि की ओर ले जाती है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ध्यान, मौन साधना और गुरु मार्गदर्शन से सहस्रार चक्र को सक्रिय किया जा सकता है।
ग्रहों और चक्रों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए
ग्रह और चक्र दोनों ऊर्जा के दो मुख हैं। ग्रह बाहरी ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं, जबकि चक्र आंतरिक ऊर्जा को शुद्ध करते हैं। जब दोनों का संतुलन स्थापित होता है, तब व्यक्ति संपूर्णता का अनुभव करता है। इस संतुलन को स्थापित करने के लिए ध्यान, योग, मंत्र जाप, दान, रत्न, ग्रह शांति उपाय और सात चक्र ध्यान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ग्रहों का दोष चक्रों पर तुरंत असर करता है, इसलिए दोनों को साथ में संतुलित करना आवश्यक है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि जब चक्र खुले और ग्रह मजबूत होते हैं, तब व्यक्ति का जीवन अत्यंत सकारात्मक, शांतिपूर्ण और सफल हो जाता है।

