जन्मकुंडली में योग – कब देता है फल, कब नहीं?

जन्मकुंडली में योग – कब देता है फल, कब नहीं?

जन्मकुंडली में योग – कब देता है फल, कब नहीं?

वैदिक ज्योतिष में योगों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना गया है, क्योंकि योग किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष प्रकार की उपलब्धियाँ, सफलता, समृद्धि, क्षमता या विशिष्ट गुणों का परिणाम ला सकते हैं। जन्म कुंडली में सैकड़ों प्रकार के योग पाए जाते हैं, जैसे राजयोग, धनयोग, गजकेसरी योग, लक्ष्मी योग, बुद्धी योग, चंद्रमंगल योग, नीचभंग योग, पंचमहापुरुष योग तथा कई अन्य शक्तिशाली योग। परंतु सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जन्मकुंडली में बने हुए योग हर व्यक्ति को समान फल क्यों नहीं देते। कई बार देखने में आता है कि किसी की कुंडली में बहुत अच्छे योग होते हुए भी व्यक्ति संघर्ष करता है, जबकि दूसरे की कुंडली में सीमित योग होने के बावजूद वह बहुत सफल हो जाता है।ज्योतिष के अनुसार इसका कारण केवल योगों का होना नहीं बल्कि उनकी सक्रियता, दशा, शक्ति, दृष्टि और ग्रहों की वास्तविक स्थिति है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि योग तभी फल देते हैं जब ग्रह मजबूत हों, सही समय आए, और व्यक्ति का कर्म उस योग के अनुरूप हो। यदि ग्रह कमजोर या पीड़ित अवस्था में हों, तो योग मौजूद होने पर भी फल नहीं देते।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि जन्म कुंडली में योगों का फल कई महत्वपूर्ण ज्योतिषीय नियमों पर आधारित होता है। इन नियमों को समझना आवश्यक है क्योंकि योग केवल पुस्तक में पढ़े गए श्लोकों और नियमों पर ही निर्भर नहीं होते, बल्कि व्यावहारिक रूप से ग्रहों के वास्तविक प्रभाव पर आधारित होते हैं। योग की शक्ति ग्रहों की स्थिति, भाव, दृष्टि, चाल, बल, अष्टकवर्ग, नवांश स्थिति और गोचर पर निर्भर करती है। यदि ये सभी तत्व मजबूत हैं, तो योग शुभ परिणाम देते हैं। यदि इनमें से एक भी क्षेत्र कमजोर हो जाए, तो योग निष्क्रिय हो जाता है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि योग कब फल देते हैं और किन परिस्थितियों में वे निर्बल या अप्रभावी हो जाते हैं।

जन्मकुंडली में योग क्या होते हैं और कैसे बनते हैं

योग दो या अधिक ग्रहों के विशेष संयोजन, दृष्टि, भाव संबंध या स्थिति के कारण बनते हैं। यह संयोजन व्यक्ति के जीवन में किसी विशेष क्षमता या घटना का सूचक होता है। जैसे गजकेसरी योग चंद्रमा और बृहस्पति के विशेष संबंध से बनता है और यह बुद्धिमत्ता व सम्मान देता है। इसी प्रकार चंद्र-मंगल योग धन वृद्धि का संकेत देता है। परंतु केवल योग का बनना ही पर्याप्त नहीं है, उसे फल देने के लिए कई ज्योतिषीय शर्तें भी आवश्यक होती हैं। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि हर योग के पीछे एक ऊर्जा होती है और वह ऊर्जा तभी सक्रिय होती है जब ग्रह सुदृढ़ हों।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि योग, ग्रहों की स्थिति पर आधारित होते हैं लेकिन ग्रहों की शक्ति और स्थिति समय के साथ बदल भी सकती है। इसलिए योग का प्रभाव स्थायी नहीं होता, बल्कि उसकी सक्रियता भी जीवन के अलग-अलग समय में बदलती रहती है। कुंडली में योग होना केवल संकेत है, परंतु उसका फल मिलना ग्रहों की दशा और गोचर पर आधारित है।

योग कब देता है फल? ग्रहों की दशा का प्रभाव

योग का परिणाम तब मिलता है जब उस योग में शामिल ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो। दशा ग्रह की ऊर्जा को सक्रिय करती है, और तभी योग अपना प्रभाव देना शुरू करता है। उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति की कुंडली में राजयोग बना हो लेकिन उस योग से संबंधित ग्रह की दशा जीवन में न आए, तो योग की शक्ति निष्क्रिय ही रह जाएगी। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि दशा को योग की चाबी कहा जाता है, क्योंकि वही ऊर्जा को खोलकर परिणामों को प्रकट करती है।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गजकेसरी योग बना है, तो उसका परिणाम तभी मिलेगा जब चंद्रमा या बृहस्पति की दशा चल रही होगी। इसी तरह धनयोग तब फल देगा जब उस योग में शामिल ग्रहों की दशा सक्रिय होगी। दशा का महत्व ज्योतिष में इतना बड़ा है कि कई बार कमजोर ग्रह भी अपनी दशा में अच्छा फल दे देते हैं और शक्तिशाली ग्रह भी अपनी दशा के बिना निष्क्रिय बने रहते हैं।

ग्रहों की शक्ति और बल: योग की वास्तविक नींव

जन्म कुंडली में ग्रहों का बल योगों की ऊर्जा को बहुत प्रभावित करता है। यदि ग्रह उच्च का है, स्वराशि का है, मित्र राशि में है, शुभ दृष्टि में है, वक्री होकर बलवान है या नवांश में अच्छी स्थिति में है, तो योग का प्रभाव अधिक बढ़ जाता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यदि ग्रह नीच का हो, शत्रु राशि में हो, पाप ग्रहों से पीड़ित हो या नवांश में कमजोर हो, तो योग कमज़ोर हो जाता है।

कई लोग यह प्रश्न करते हैं कि उनकी कुंडली में महान राजयोग होते हुए भी जीवन में सफलता क्यों नहीं मिलती। इसका कारण यह है कि राजयोग बनाने वाले ग्रह कमजोर हो सकते हैं, अस्त हो सकते हैं, शत्रु राशि में हो सकते हैं या कुंडली में अन्य ग्रहों द्वारा पीड़ित हो सकते हैं। ग्रहों की शक्ति योग के फल को निर्धारित करती है और बिना ग्रहों के बल के कोई भी योग शक्तिशाली नहीं रह सकता।

भाव की स्थिति: योग किस घर में बन रहा है

किसी भी योग का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह योग किस भाव में बन रहा है। हर घर का एक विशेष महत्व होता है और उसी के अनुसार योग फल देता है। यदि राजयोग दसवें भाव में बने, तो करियर में अधिक सफलता मिलती है। यदि धनयोग दूसरे या ग्यारहवें भाव में बने, तो आर्थिक लाभ होते हैं। यदि पंचम भाव में योग बने, तो बुद्धि और शिक्षा में सफलता मिलती है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि योग का मूल परिणाम भाव के अनुसार बदलता है और उस भाव के स्वामी की शक्ति से भी प्रभावित होता है।

यदि योग आठवें या बारहवें भाव में बन रहा है, तो इच्छित फल मिलने की संभावना कम हो जाती है, क्योंकि ये भाव हानि, रहस्य, संघर्ष और त्याग से जुड़े माने जाते हैं। ऐसे योग जीवन में आध्यात्मिक परिणाम दे सकते हैं परंतु भौतिक सफलता सीमित रह सकती है।

योग की सक्रियता पर शुभ और पाप दृष्टि का प्रभाव

ग्रहों की दृष्टि किसी भी योग को मजबूत या कमजोर कर सकती है। यदि योग शुभ ग्रहों जैसे बृहस्पति, शुक्र या चंद्रमा की दृष्टि में है, तो फल अधिक मिलता है। इसके विपरीत यदि योग पर राहु, केतु या शनि जैसे ग्रहों की पाप दृष्टि है, तो परिणाम कमज़ोर हो जाते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि दृष्टि योग के फल को काफी बदल सकती है, क्योंकि ग्रहों की दृष्टि मानसिक, आध्यात्मिक और भौतिक सभी स्तरों पर प्रभाव डालती है।

गोचर का प्रभाव: योग कब सक्रिय होता है

योग का प्रभाव तब और बढ़ जाता है जब ग्रह गोचर में अनुकूल स्थिति में आते हैं। गोचर घटनाओं के समय को निर्धारित करता है, जबकि दशा घटनाओं की दिशा तय करती है। यदि योग से संबंधित ग्रह गोचर में शुभ भावों से गुजर रहे हों, तो योग का फल तीव्र हो जाता है। विशेष रूप से बृहस्पति, शनि और राहु-केतु का गोचर योगों के फल पर गहरा प्रभाव डालता है।

कर्म का प्रभाव: योग तभी फल देते हैं जब व्यक्ति कर्म करता है

योग के फल मिलने के लिए व्यक्ति को कर्मशील होना आवश्यक है। यदि किसी की कुंडली में धनयोग हो और वह व्यक्ति प्रयत्न न करे, कोई कार्य न करे या अवसरों का उपयोग न करे, तो योग भी सक्रिय नहीं होगा। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि योग केवल मार्गदर्शन देता है, परंतु परिणाम व्यक्ति के कर्म के अनुसार मिलते हैं। योग शुभ फलों का संकेत देता है, लेकिन कर्म उन्हें वास्तविकता में बदलता है। इसलिए योग और कर्म दोनों का संतुलन आवश्यक है।

योग कब निष्क्रिय हो जाते हैं या फल नहीं देते

कई परिस्थितियाँ योगों को निष्क्रिय कर सकती हैं। यदि ग्रह कमजोर हों, अस्त हों, शत्रु राशि में हों या पाप दृष्टि के कारण पीड़ित हों, तो योग निष्क्रिय हो जाता है। यदि योग बनाने वाले ग्रहों की दशा जीवन में न आए, तो योग केवल कुंडली में लिखा हुआ रह जाता है। यदि गोचर अनुकूल न हो, तो योग का फल टल जाता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि कई बार योग सक्रिय होने के बावजूद व्यक्ति मनोवैज्ञानिक, सामाजिक या परिस्थितिजन्य कारणों से भी उसका लाभ नहीं उठा पाता।

नवांश कुंडली का महत्व: योग की वास्तविक शक्ति वही निर्धारित करती है

नवांश कुंडली (D9 chart) ग्रहों की वास्तविक शक्ति और फल को निर्धारित करती है। यदि कुंडली में योग बना हो लेकिन नवांश में ग्रह कमजोर हों, तो योग का प्रभाव कम हो जाता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि किसी भी योग के सही परिणाम समझने के लिए नवांश कुंडली अनिवार्य रूप से देखनी चाहिए।

जन्म कुंडली में योग तभी फल देते हैं जब ग्रह मजबूत हों, सही दशा चल रही हो, गोचर अनुकूल हो और व्यक्ति अपने कर्म द्वारा योग की ऊर्जा को सक्रिय रखे। केवल कुंडली में योग लिखा होना पर्याप्त नहीं है; ग्रहों की शक्ति, दृष्टि, भाव, नवांश और दशा की स्थिति योग के परिणामों को निर्धारित करते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी दोनों मानते हैं कि योग आत्मा और शरीर के संयुक्त विकास का संकेत देता है, परंतु उसका वास्तविक प्रभाव ग्रहों और व्यक्ति के कर्म पर निर्भर करता है।

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