क्या गोचर के दौरान शुभ ग्रह भी कभी नुकसान पहुंचा सकते हैं?

क्या गोचर के दौरान शुभ ग्रह भी कभी नुकसान पहुंचा सकते हैं?.

क्या गोचर के दौरान शुभ ग्रह भी कभी नुकसान पहुंचा सकते हैं?

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का गोचर अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली घटनाएँ, परिवर्तन, अवसर और चुनौतियाँ अधिकतर ग्रहों के गोचर से ही निर्धारित होती हैं। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि जब कोई शुभ ग्रह जैसे गुरु, शुक्र या बुध गोचर में अनुकूल स्थिति में होते हैं, तो वे शुभ फल देते हैं। लेकिन कई बार यह देखा गया है कि शुभ ग्रह भी गोचर के समय विपरीत या नकारात्मक परिणाम देने लगते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? इस रहस्य को समझने के लिए हमें वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों को गहराई से जानना आवश्यक है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, हर शुभ ग्रह हमेशा लाभ नहीं देता, बल्कि उसकी स्थिति, दृष्टि, भाव और दशा के आधार पर उसका प्रभाव बदल जाता है।

गोचर का अर्थ और इसका प्रभाव

गोचर का अर्थ है – किसी ग्रह का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना। जन्म कुंडली में ग्रहों की जो स्थिति जन्म के समय होती है, उसके सापेक्ष जब ग्रह चलते हैं, तो उनका यह गमन ही गोचर कहलाता है। गोचर का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली के अनुसार भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, गुरु का गोचर किसी व्यक्ति के लिए धन लाभ का कारण बन सकता है, जबकि किसी अन्य के लिए बाधाओं का संकेत हो सकता है।

ग्रहों का यह संचरण व्यक्ति की दशा, महादशा और अंतर्दशा के साथ मिलकर फल देता है। इसीलिए, यदि गोचर में शुभ ग्रह भी प्रतिकूल दशा या अशुभ भाव से संबंधित हो जाए, तो उसके प्रभाव बदल जाते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि गोचर के परिणाम तभी शुभ होते हैं, जब ग्रह जन्म कुंडली में शुभ भावों से संबंधित हों और उन पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो।

शुभ ग्रह कब अशुभ फल देने लगते हैं?

अक्सर लोग यह मानते हैं कि गुरु, शुक्र और बुध जैसे ग्रह सदैव शुभ होते हैं, परंतु यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। इन ग्रहों का प्रभाव उनकी स्थिति, भाव, दृष्टि और योगों के आधार पर निर्धारित होता है।

यदि कोई शुभ ग्रह जन्म कुंडली में अशुभ भावों (जैसे 6वां, 8वां या 12वां भाव) में गोचर कर रहा हो, तो वह व्यक्ति को संघर्ष, रोग, मानसिक तनाव या हानि का अनुभव करा सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि गुरु गोचर के दौरान अष्टम भाव में आ जाए, तो वह अचानक परिवर्तन, शारीरिक थकावट या पारिवारिक तनाव का कारण बन सकता है। इसी तरह, शुक्र यदि बारहवें भाव में गोचर करता है, तो आर्थिक हानि या व्यर्थ खर्च की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि शुभ ग्रह तब भी हानि पहुँचा सकते हैं जब वे पाप ग्रहों जैसे राहु, केतु या शनि की दृष्टि में आ जाते हैं। इस स्थिति में उनकी शुभता कम होकर व्यक्ति के जीवन में अस्थिरता ला सकती है।

गुरु (बृहस्पति) के गोचर का प्रभाव

गुरु ग्रह को देवताओं का गुरु कहा गया है और यह ज्ञान, धर्म, विवाह, धन और संतान का कारक ग्रह है। सामान्यतः गुरु का गोचर शुभ माना जाता है, लेकिन जब यह ग्रह नीच राशि में या अशुभ भाव में गोचर करता है, तो यह जीवन में भ्रम, गलत निर्णय, आर्थिक अस्थिरता या वैवाहिक मतभेद का कारण बन सकता है।

यदि गुरु गोचर के दौरान छठे भाव में प्रवेश करता है, तो यह शत्रुओं की वृद्धि, कर्ज या मुकदमेबाजी के संकेत देता है। वहीं, अष्टम भाव में गोचर होने पर यह व्यक्ति के जीवन में अचानक परिवर्तन या मानसिक उलझन ला सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि गुरु की स्थिति चाहे शुभ हो, लेकिन यदि व्यक्ति की दशा किसी पाप ग्रह की चल रही हो, तो उसका प्रभाव कमजोर या उल्टा हो सकता है।

शुक्र के गोचर से उत्पन्न परिणाम

शुक्र को प्रेम, सौंदर्य, भोग, कला और वैवाहिक जीवन का कारक माना गया है। सामान्य परिस्थितियों में इसका गोचर व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व, सुख और धन देता है। लेकिन जब शुक्र पाप प्रभाव में आ जाए या अशुभ भावों में गोचर करे, तो यह अस्थिरता, संबंधों में तनाव या शारीरिक विकार उत्पन्न कर सकता है।

यदि शुक्र बारहवें भाव में गोचर करे, तो व्यक्ति में अत्यधिक खर्च, भावनात्मक निर्भरता या प्रेम में असफलता की स्थिति बन सकती है। वहीं, छठे भाव में इसका गोचर स्वास्थ्य समस्याएँ और कार्यक्षेत्र में विरोधी वातावरण उत्पन्न कर सकता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यदि किसी की कुंडली में शुक्र पहले से कमजोर हो और उस समय उसकी दशा चल रही हो, तो गोचर के दौरान यह ग्रह विपरीत फल भी दे सकता है।

बुध के गोचर के परिणाम

बुध को बुद्धि, व्यापार, संचार और विवेक का ग्रह माना गया है। यह ग्रह जब शुभ भावों में होता है, तो व्यक्ति को सफलता, चतुराई और वाणी में प्रभाव प्रदान करता है। लेकिन जब बुध नीच भावों में या शत्रु ग्रहों से प्रभावित होता है, तो यह भ्रम, गलतफहमी और निर्णय क्षमता में कमी लाता है।

यदि बुध गोचर के दौरान अष्टम भाव में आ जाए, तो यह मानसिक तनाव, योजनाओं में रुकावट और आर्थिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। इसी प्रकार, बारहवें भाव में बुध का गोचर अनावश्यक खर्च और मानसिक उलझन उत्पन्न कर सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, बुध का प्रभाव विशेष रूप से उन व्यक्तियों पर अधिक होता है जिनका व्यवसाय लेखन, संचार, व्यापार या तकनीकी क्षेत्र से जुड़ा होता है। इसीलिए, बुध के गोचर को हमेशा कुंडली की दशा के साथ देखना चाहिए।

गोचर और दशा का संयुक्त प्रभाव

केवल गोचर देखकर भविष्यवाणी करना अधूरा होता है। गोचर तभी परिणाम देता है जब वह व्यक्ति की वर्तमान दशा और उपदशा के साथ मेल खाता हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी की गुरु की महादशा चल रही है और उसी समय गुरु शुभ भाव में गोचर कर रहा है, तो अत्यंत शुभ परिणाम मिलते हैं। लेकिन यदि शनि या राहु की दशा चल रही हो और गुरु गोचर में अशुभ भाव में प्रवेश करे, तो परिणाम नकारात्मक हो सकते हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का कहना है कि गोचर की शुभता या अशुभता व्यक्ति की कुंडली की समग्र स्थिति पर निर्भर करती है। यही कारण है कि किसी एक ग्रह के आधार पर निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होता।

क्यों शुभ ग्रह कभी नुकसान पहुंचाते हैं?

शुभ ग्रह तब नुकसान पहुंचाते हैं जब वे ऐसे भावों से गुजरते हैं जो व्यक्ति के लिए स्वभाविक रूप से हानिकारक माने जाते हैं। जैसे –

  • छठा भाव – रोग, शत्रु और कर्ज का भाव

  • अष्टम भाव – बाधाओं और अचानक घटनाओं का भाव

  • बारहवां भाव – व्यय और हानि का भाव

यदि शुभ ग्रह इन भावों में गोचर करते हैं, तो उनके परिणाम अस्थायी रूप से नकारात्मक हो सकते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि गोचर का प्रभाव केवल ग्रह की राशि से नहीं बल्कि नक्षत्र और डिग्री से भी निर्धारित होता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि कई बार शुभ ग्रह व्यक्ति को कुछ समय के लिए संघर्ष में डालकर दीर्घकालीन लाभ के लिए तैयार करते हैं। इसलिए हर अशुभ गोचर का अर्थ हानि नहीं होता, बल्कि यह आत्म-सुधार का अवसर भी हो सकता है।

गोचर के नकारात्मक प्रभाव से बचने के उपाय

यदि शुभ ग्रह गोचर में अशुभ फल दे रहा हो, तो कुछ ज्योतिषीय उपाय अपनाकर इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। जैसे –

  • संबंधित ग्रह के बीज मंत्र का नियमित जाप करें।

  • गुरुवार को गुरु के लिए पीले वस्त्र और हल्दी का दान करें।

  • शुक्रवार को शुक्र के लिए सफेद वस्त्र या चावल दान करें।

  • बुधवार को बुध के लिए हरे मूंग या पन्ना रत्न का प्रयोग करें (कुंडली के अनुसार)।

  • किसी अनुभवी ज्योतिषी से गोचर और दशा का संयोजन जानें।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि सही समय पर उपाय कर लिए जाएँ, तो नकारात्मक गोचर भी सकारात्मक दिशा में बदल सकता है।

गोचर ज्योतिष का एक ऐसा महत्वपूर्ण भाग है जो व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन की दिशा तय करता है। शुभ ग्रह भी कभी-कभी नुकसान पहुंचा सकते हैं यदि वे अशुभ भावों में गोचर करें, पाप ग्रहों से प्रभावित हों या व्यक्ति की दशा के अनुरूप न हों।

इसलिए किसी भी गोचर को समझने से पहले संपूर्ण कुंडली का विश्लेषण आवश्यक है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि गोचर को केवल सतही रूप से नहीं, बल्कि दशा, भाव और ग्रह दृष्टियों के साथ देखकर ही सटीक निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

यदि आप यह जानना चाहते हैं कि वर्तमान में आपके जीवन में कौन-से ग्रह गोचर कर रहे हैं और उनका आप पर क्या प्रभाव है, तो किसी अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें। सही मार्गदर्शन से ग्रहों की स्थिति को समझकर व्यक्ति न केवल जीवन के संघर्षों से पार पा सकता है बल्कि सफलता, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे भी बढ़ सकता है।

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