क्या बारहवें भाव के ग्रह विदेश यात्रा का आधार हैं?

क्या बारहवें भाव के ग्रह विदेश यात्रा का आधार हैं?

क्या बारहवें भाव के ग्रह विदेश यात्रा का आधार हैं?

वैदिक ज्योतिष में बारहवां भाव रहस्यों, विस्तार, मोक्ष, आध्यात्मिकता और विदेशी भूमि से जुड़ा हुआ माना जाता है। यही कारण है कि जन्म कुंडली में बारहवें भाव की स्थिति अक्सर यह बताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि व्यक्ति के जीवन में विदेश यात्रा, विदेश में नौकरी, विदेश में बस्ती या विदेशी संस्कृति से जुड़ाव किस हद तक होगा। बारहवें भाव को वैसे भी खर्च, एकांत, अस्पताल, मठ, आध्यात्मिक उन्नति, विदेशी व्यापार और लंबी दूरी की यात्रा से संबंधित माना जाता है। जब इस भाव में कोई प्रभावी ग्रह आते हैं, तो वे व्यक्ति के जीवन को विदेशों की दिशा में मोड़ सकते हैं। इस विषय में गहराई से समझने के लिए हमें बारहवें भाव की प्रकृति, उसमें बैठे ग्रहों, उसकी दृष्टि, उसके स्वामी और उसकी दशा-महादशा को विस्तार से समझना आवश्यक है। इसी दृष्टिकोण से यह ब्लॉग तैयार किया गया है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि क्या वास्तव में बारहवें भाव के ग्रह विदेश यात्रा के मुख्य आधार माने जा सकते हैं।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी की अवधारणाओं का भी उल्लेख किया जा रहा है, क्योंकि वे लंबे समय से विदेशी यात्रा, ग्रह की दशा और जन्म कुंडली के बारहवें भाव पर विशेषज्ञता रखते हैं।

बारहवें भाव का महत्व और विदेशी यात्रा का गहरा संबंध

ज्योतिष में बारहवां भाव जीवन का अंतिम भाव है, जिसे ‘व्यासंग भाव’, ‘व्यय भाव’ और ‘मोक्ष भाव’ भी कहा गया है। यह न केवल खर्च और नुकसान को दर्शाता है बल्कि यह जीवन के विस्तार, सीमाओं को पार करने और आत्मा की यात्रा का प्रतीक भी माना जाता है। इसी वजह से यह भाव विदेशी यात्रा, विदेशी व्यापार, विदेश में शिक्षा और विदेश में जीवन से अत्यधिक जुड़ा हुआ समझा जाता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में बारहवें भाव में मजबूत ग्रह होते हैं या बारहवां भाव अच्छी स्थिति में होता है, उनके जीवन में विदेश यात्रा की संभावनाएं आमतौर पर अधिक होती हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार बारहवें भाव की शक्ति तब और बढ़ जाती है जब इसके स्वामी किसी शुभ भाव में बैठे हों या किसी शुभ ग्रह के साथ संबंध बना रहे हों। यह स्थिति व्यक्ति को विदेशी अवसरों की ओर आकर्षित करती है और उसे जीवन में वैश्विक स्तर पर कुछ विशेष करने का अवसर देती है। वहीं इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यदि बारहवें भाव का संबंध नवम भाव (भाग्य) या तृतीय भाव (यात्राएं) से बन जाए, तो व्यक्ति के विदेश जाने की घटनाएं तेजी से प्रबल हो जाती हैं।

बारहवें भाव में ग्रहों का प्रभाव: क्या कहते हैं ज्योतिषीय सिद्धांत

जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में बारहवें भाव में ग्रह स्थित होते हैं, तो वे अलग-अलग प्रकार से विदेशी संपर्कों और यात्राओं को प्रभावित करते हैं। यह प्रभाव ग्रह की प्रकृति, उसकी दृष्टि, उसकी शक्ति और उसके स्वामी की स्थिति के आधार पर बदलता रहता है।

यदि सूर्य बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति को विदेश में सम्मान प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा व्यक्ति विदेशों से जुड़े कार्य, प्रशासनिक सेवाएं, राजनयिक कार्य या विदेश में सरकारी पद की ओर आकर्षित होता है। चंद्रमा बारहवें भाव में होने पर व्यक्ति के मन में हमेशा दूर यात्रा का खिंचाव बना रहता है, और उसे विदेश में शांति, करियर और भावनात्मक संतुलन की तलाश रहती है। वहीं शुक्र बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति को विदेशी फैशन, फिल्म, कला, डिजाइन, होटल, मेहमाननवाज़ी या विदेश में जीवन शैली संबंधी अवसर मिल सकते हैं। बुध की स्थिति यहां व्यक्ति को विदेश व्यापार, विदेशी भाषा, अनुवाद, कूटनीति और संचार से जुड़े कार्यों में सफल बनाती है।

मंगल यदि बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति अचानक यात्राओं, विदेश में सैन्य या खेल से जुड़े अवसरों या तकनीकी कार्यों में लाभ पाता है। गुरु की स्थिति यहां व्यक्ति को विदेश में शिक्षा,अनुसंधान, उच्च अध्ययन या शिक्षण क्षेत्र में उत्कृष्ट अवसर प्रदान कर सकती है। इसी तरह शनि का बारहवें भाव में होना व्यक्ति को लंबे समय तक विदेश में रहने का योग बनाता है, क्योंकि शनि स्थायित्व और कठोर परिश्रम का कारक है। राहु और केतु के बारहवें भाव में होने से व्यक्ति को विदेश जाने के अवसर अचानक और अप्रत्याशित रूप से मिल सकते हैं। राहु विशेष रूप से विदेशी भूमि का कारक माना जाता है, इसलिए इसका बारहवें भाव से संबंध बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि बारहवें भाव में ग्रहों का अच्छा या मजबूत होना हमेशा विदेश यात्रा का संकेत नहीं होता, बल्कि ग्रहों और घरों के बीच संबंध होने से भी विदेश योग बनते हैं। उदाहरण के लिए, यदि बारहवें भाव के स्वामी का संबंध सातवें भाव (विदेशी जीवनसाथी), दसवें भाव (करियर) या तीसरे भाव (यात्रा) से बन जाए, तो व्यक्ति निश्चित रूप से विदेश से जुड़े अवसर प्राप्त करता है।

कुंडली में बारहवें भाव से विदेश योग कैसे निर्मित होते हैं

कुंडली में विदेश यात्रा के सबसे बड़े संकेतकों में से एक है बारहवां भाव, उसका स्वामी और उससे बनने वाले योग। उदाहरण के लिए, यदि बारहवें भाव का स्वामी नवम भाव में हो तो यह व्यक्ति को धार्मिक, शैक्षणिक या आध्यात्मिक उद्देश्यों से विदेश यात्रा करने का अवसर देता है। यदि बारहवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विदेश में नौकरी या व्यवसाय मिलने की संभावना बहुत अधिक रहती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि विदेश योग तब और मजबूत होते हैं जब बारहवां भाव शुभ ग्रहों से प्रभावित होता है या जब इस भाव का स्वामी उच्च का हो या अपने मित्र ग्रहों के बीच बैठा हो। ऐसे व्यक्ति के जीवन में विदेश यात्रा स्थायी रूप से जुड़ जाती है। उन्होंने अपने कई वर्षों के अनुभव में ऐसे कई मामलों को देखा है जहाँ व्यक्ति बारहवें भाव की मजबूती के कारण विदेश जाकर अपना जीवन स्थापित कर चुका है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, विदेश योग केवल बारहवें भाव से ही नहीं, बल्कि राहु की स्थिति, नवम भाव की शक्ति, द्वादश भाव के स्वामी की महादशा, या चंद्र कुंडली में बारहवें भाव के संबंध से भी बनते हैं। राहु विशेष रूप से विदेश का कारक माना जाता है, इसलिए यदि राहु का बारहवें भाव, नवम भाव या सप्तम भाव से संबंध बनता है, तो व्यक्ति के विदेश जाने की संभावनाएं अधिक होती हैं।

दशा और गोचर: विदेश यात्रा को सक्रिय करने वाले कारक

विदेश यात्रा केवल भाव और ग्रहों की स्थिति से नहीं बनती, बल्कि इसे सक्रिय करने में दशा और गोचर का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। यदि बारहवें भाव के स्वामी की महादशा चल रही हो, या उस ग्रह की अंतर्दशा सक्रिय हो, तो व्यक्ति के जीवन में विदेशी संपर्क, विदेश यात्रा या विदेश में बसने के अवसर मजबूत हो सकते हैं।

गोचर में शनि जब बारहवें भाव से गुजरता है या राहु-केतु इस भाव पर प्रभाव डालते हैं, तब भी विदेश की घटनाएं अचानक बढ़ जाती हैं। गुरु का गोचर विशेष रूप से विदेश यात्रा के लिए शुभ माना जाता है क्योंकि गुरु विस्तार और विकास का कारक है। गुरु का बारहवें भाव, नवम भाव या पांचवें भाव से गोचर व्यक्ति के जीवन में बड़े अवसर लाता है।

विदेश यात्रा और बारहवें भाव के वास्तविक जीवन उदाहरण

कई लोग ऐसे होते हैं जिनकी कुंडली में बारहवां भाव बेहद मजबूत होता है और वे प्रारंभिक उम्र से ही विदेश यात्रा की इच्छा रखते हैं। ऐसे लोग अक्सर अपने करियर में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का प्रयास करते हैं। शिक्षा, व्यापार, नौकरी या विवाह—इन सभी मामलों में बारहवां भाव विदेश संबंधों को गहराई से प्रभावित करता है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी ने अपने अनुभवों में यह भी बताया है कि कई बार व्यक्ति के पास विदेश यात्रा की इच्छा होती है, परंतु बारहवां भाव कमजोर होने के कारण वह प्रयासों के बावजूद विदेश नहीं जा पाता। लेकिन जैसे ही बारहवें भाव का स्वामी मजबूत दशा में आता है, व्यक्ति को विदेश जाने का अवसर मिल जाता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि जिन युवाओं की कुंडली में बारहवां भाव मजबूत होता है, वे इंटरनेशनल बिजनेस, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट, पर्यटन, पायलटिंग, होटल मैनेजमेंट और टेक्नॉलॉजी संबंधी क्षेत्रों में ज्यादा सफल होते हैं। इस भाव का प्रभाव व्यक्ति के करियर के दिशा-निर्देशन में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जन्म कुंडली का बारहवां भाव निस्संदेह विदेश यात्रा, विदेश में करियर और विदेशी संपर्कों का प्रमुख आधार माना जाता है। हालांकि केवल बारहवें भाव को देखकर फैसला नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भाव निश्चित रूप से व्यक्ति के जीवन में विदेशी अवसरों के द्वार खोलता है। यदि इस भाव का स्वामी मजबूत हो, ग्रहों का उसमें शुभ प्रभाव हो, राहु का विदेश कारक संबंध बन रहा हो, और दशा-गोचर अनुकूल हों, तो व्यक्ति विदेश जाकर अपने जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी इस बात पर जोर देते हैं कि बारहवें भाव का ज्योतिषीय विश्लेषण अत्यंत सूक्ष्म और विस्तृत होना चाहिए, तभी किसी व्यक्ति के विदेश जीवन का वास्तविक अनुमान लगाया जा सकता है। सही मार्गदर्शन और उचित विश्लेषण मिल जाए, तो व्यक्ति अपने जीवन में विदेश यात्राओं के सही समय और अवसरों का लाभ उठाकर सफलता प्राप्त कर सकता है।

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