क्या ग्रहों की दशा से कर्मफल तुरंत मिलता है?

क्या ग्रहों की दशा से कर्मफल तुरंत मिलता है?

मानव जीवन का हर पल ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभावों से जुड़ा हुआ है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की दशा या अंतर्दशा आरंभ होती है, तो जीवन में सुख-दुख, सफलता-असफलता, लाभ-हानि जैसी घटनाएँ घटित होती हैं। अक्सर लोगों का यह प्रश्न होता है कि क्या ग्रहों की दशा शुरू होते ही फल मिलना प्रारंभ हो जाता है, या कर्मफल मिलने में समय लगता है? इस प्रश्न का उत्तर बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है कर्म, भाग्य और ग्रहों की गति के सिद्धांत से। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, कर्मफल का संबंध केवल ग्रह दशा से नहीं, बल्कि व्यक्ति के कर्म, ग्रह स्थिति, और समय के संयोग से होता है।

ग्रह दशा क्या होती है?

ज्योतिष में "दशा" उस काल को कहा जाता है जब कोई विशेष ग्रह व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालता है। हर ग्रह की अपनी एक अवधि होती है — जैसे सूर्य की दशा 6 वर्ष, चंद्र की 10 वर्ष, मंगल की 7 वर्ष, राहु की 18 वर्ष, और शनि की 19 वर्ष की होती है। यह दशाएँ व्यक्ति के जीवन की दिशा और घटनाओं को नियंत्रित करती हैं। दशा यह बताती है कि वर्तमान में कौन-सा ग्रह सक्रिय है और उसके प्रभाव से कौन-कौन से कर्मों का फल सामने आने वाला है।

जब व्यक्ति की कुंडली में किसी ग्रह की महादशा या अंतर्दशा आरंभ होती है, तो वही ग्रह जीवन की प्रमुख घटनाओं को प्रभावित करता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यह काल केवल भौतिक सुख या दुख का नहीं, बल्कि आत्मिक, मानसिक और कर्मजन्य परिणामों का भी समय होता है।

क्या ग्रह दशा से कर्मफल तुरंत मिलता है?

इस प्रश्न का उत्तर सीधा ‘हाँ’ या ‘ना’ में नहीं दिया जा सकता। ग्रह दशा कर्मफल को उजागर करती है, लेकिन यह फल व्यक्ति के पूर्व कर्मों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने अपने पूर्व जन्मों में या वर्तमान जीवन में अच्छे कर्म किए हैं, तो शुभ ग्रहों की दशा में उन्हें तुरंत लाभ मिलता है। वहीं, जिनका कर्म संतुलन कमजोर है, उन्हें फल मिलने में विलंब होता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, ग्रह दशा को एक प्रकार के "कर्म सक्रियण काल" के रूप में देखा जा सकता है। ग्रह स्वयं परिणाम नहीं देते, बल्कि वे कर्मों के अनुसार परिणाम को सामने लाने का माध्यम बनते हैं।

कर्मफल और ग्रह दशा का संबंध

कर्म और ग्रहों का संबंध अत्यंत गहरा है। कुंडली व्यक्ति के कर्मों का दर्पण होती है। ग्रह दशा यह बताती है कि कब कौन-से कर्मों के परिणाम सामने आएंगे।

  • यदि कोई ग्रह शुभ स्थिति में है और व्यक्ति ने सत्कर्म किए हैं, तो वह दशा सुख, सफलता और उन्नति लेकर आती है।

  • वहीं, यदि ग्रह अशुभ भाव में है या व्यक्ति के कर्म नकारात्मक हैं, तो वही दशा बाधाएँ, मानसिक अशांति या असफलता दे सकती है।

इस प्रकार, दशा का फल तुरंत नहीं मिलता क्योंकि यह व्यक्ति के कर्मों की गहराई और समय के साथ जुड़ा होता है।

शनि दशा और विलंबित कर्मफल

शनि को कर्मों का न्यायाधीश कहा गया है। यह ग्रह व्यक्ति को उसके कर्मों का उचित परिणाम अवश्य देता है, लेकिन हमेशा तुरंत नहीं। कई बार शनि विलंबित लेकिन स्थायी फल देता है।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि शनि की दशा में व्यक्ति को संघर्ष और परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ता है, ताकि वह अपने कर्मों के प्रति सजग हो सके। परंतु जब शनि का शुभ प्रभाव सक्रिय होता है, तब वही व्यक्ति जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त करता है।

गुरु दशा और शुभ कर्मफल का समय

गुरु (बृहस्पति) ज्ञान, धर्म, और सद्कर्म का ग्रह है। जब गुरु की दशा आती है, तो व्यक्ति को उसके अच्छे कर्मों का फल मिलने लगता है। यदि व्यक्ति ने जीवन में धर्म, सेवा, शिक्षा, या दान का कार्य किया है, तो गुरु दशा के दौरान उसका प्रभाव अत्यंत शुभ रूप में प्रकट होता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि गुरु की दशा व्यक्ति को मानसिक शांति, समाज में प्रतिष्ठा और आत्मिक विकास प्रदान करती है।

राहु और केतु की दशा में विलक्षण कर्मफल

राहु और केतु की दशाएँ अक्सर रहस्यमय और अप्रत्याशित परिणाम देती हैं। ये ग्रह तुरंत फल देने वाले होते हैं, परंतु उनका स्वरूप हमेशा स्पष्ट नहीं होता।
कई बार राहु की दशा में अचानक धन लाभ, विदेश यात्रा या प्रसिद्धि मिलती है, जबकि कभी यह भ्रम, मानसिक तनाव या विवाद भी ला सकती है। केतु की दशा आध्यात्मिकता, त्याग और मोक्ष की ओर ले जाती है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, इन ग्रहों के प्रभाव को समझने के लिए कुंडली के संपूर्ण विश्लेषण की आवश्यकता होती है।

ग्रह दशा में परिणाम आने की गति क्यों भिन्न होती है?

हर व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति, दृष्टि और योग अलग-अलग होते हैं। इसलिए किसी व्यक्ति को दशा शुरू होते ही परिणाम मिल जाते हैं, जबकि दूसरे को वही परिणाम वर्षों बाद प्राप्त होते हैं।
यह भिन्नता व्यक्ति के कर्म संतुलन, ग्रहों के गोचर, और भावों की स्थिति पर निर्भर करती है।

उदाहरण के तौर पर —

  • यदि कोई ग्रह केंद्र या त्रिकोण भाव में है, तो उसका परिणाम जल्दी मिलता है।

  • यदि ग्रह पापकर्तरी योग या नीच स्थिति में है, तो फल मिलने में विलंब होता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का कहना है कि कुंडली की दशा को समझने के लिए ग्रहों की गहराई, भावों की स्थिति और व्यक्ति के कर्मों का संयुक्त विश्लेषण आवश्यक है।

कर्मों से दशा का प्रभाव कैसे बदला जा सकता है?

ज्योतिष के अनुसार, ग्रह दशा निश्चित होती है, लेकिन उसके प्रभाव को कम या अधिक किया जा सकता है। यदि व्यक्ति सत्कर्म, जप, दान, पूजा, और ग्रह शांति उपाय अपनाए, तो अशुभ ग्रह भी शुभ परिणाम दे सकते हैं।
उदाहरण के लिए —

  • शनि की दशा में गरीबों की सेवा और श्रम से संबंधित कार्य करना लाभकारी होता है।

  • मंगल की दशा में अनुशासन, संयम और हनुमान पूजा शुभ फल देती है।

  • चंद्र की दशा में मानसिक शांति और ध्यान का अभ्यास सहायक होता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि ग्रहों को प्रसन्न करने का सबसे बड़ा उपाय है – अच्छे कर्म करना और आत्मा की शुद्धि बनाए रखना।

कर्मफल और ग्रह दशा का अंतिम निष्कर्ष

कर्मफल तुरंत मिलता है या नहीं, यह ग्रह दशा और व्यक्ति के कर्मों के बीच के समन्वय पर निर्भर करता है। कुछ ग्रह जैसे राहु, केतु और मंगल त्वरित परिणाम देते हैं, जबकि शनि और गुरु जैसे ग्रह दीर्घकालिक और स्थायी फल प्रदान करते हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का कहना है कि ग्रह केवल माध्यम हैं; वास्तविक शक्ति व्यक्ति के कर्मों में निहित होती है। यदि कर्म सकारात्मक हैं, तो ग्रह दशा हमेशा जीवन में शुभता लाती है।

ग्रह दशा और कर्मफल का संबंध अत्यंत सूक्ष्म लेकिन सशक्त है। यह कहना गलत नहीं होगा कि ग्रह दशा हमारे कर्मों के परिणाम को सक्रिय करती है। व्यक्ति के जीवन में घटनाएँ उसी क्रम में घटित होती हैं, जैसा उसने अपने कर्मों से अर्जित किया होता है।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि व्यक्ति अपनी कुंडली, ग्रह दशा, और कर्मों का संतुलन बनाए रखे, तो कोई भी ग्रह उसके लिए अशुभ नहीं रह सकता।

अंततः यही सत्य है कि ग्रह दशा कर्मफल का प्रतिबिंब है, और जब कर्म शुभ हों, तो फल अवश्य शुभ ही होगा — चाहे वह तुरंत मिले या समय लेकर।

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