संतान योग – कुंडली में कैसे पहचानें
भारतीय वैदिक ज्योतिष में संतान सुख को जीवन के महत्वपूर्ण फलों में से एक माना गया है। किसी भी दंपति के जीवन में संतान का होना न केवल एक भावनात्मक अनुभव होता है, बल्कि यह जीवन को पूर्णता और उद्देश्य भी प्रदान करता है। किन्तु कुछ लोगों को संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं, और इसके पीछे का कारण जन्मकुंडली में छुपा होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि कुंडली में संतान योग कैसे पहचाना जाता है, और कौन-से ग्रह, भाव एवं दशाएं इसके लिए उत्तरदायी होती हैं।
संतान से संबंधित भाव:
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, संतान योग का निर्धारण मुख्यतः निम्नलिखित भावों और ग्रहों के आधार पर किया जाता है:
पंचम भाव :
पंचम भाव संतान भाव कहलाता है। यही भाव संतान की स्थिति, संख्या, स्वभाव और प्राप्ति के योग को दर्शाता है। इस भाव का बलवान होना संतान सुख के लिए आवश्यक होता है।
पंचम भाव का स्वामी :
यदि पंचम भाव का स्वामी बलवान, शुभ ग्रहों से दृष्ट और उच्च राशि में हो, तो संतान सुख उत्तम होता है।
जूपिटर (गुरु/बृहस्पति):
गुरु को संतान का कारक ग्रह माना गया है। विशेष रूप से पुरुष की कुंडली में गुरु की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। स्त्रियों के लिए चंद्रमा और पंचम भाव अधिक महत्व रखते हैं।
नवम भाव :
यह भाग्य, धर्म और पूर्व जन्म के कर्मों से संबंधित है। यह भी संतान प्राप्ति में सहायक होता है।
कारक ग्रहों की दृष्टि और स्थिति:
बृहस्पति, शुक्र और चंद्रमा – ये तीनों ग्रह संतान सुख के लिए शुभ माने जाते हैं। इनकी अनुकूल स्थिति संतान योग को मजबूत करती है।
संतान योग के कुछ प्रमुख संकेत:
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संतान योग के कुछ प्रमुख संकेत: |
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पंचम भाव में गुरु, शुक्र या चंद्रमा का शुभ स्थिति में होना।
पंचम भाव या उसके स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि।
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पंचम भाव का स्वामी नवांश कुंडली में भी बलवान हो।
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चंद्रमा और गुरु का केंद्र/त्रिकोण में योग।
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स्त्री की कुंडली में पंचम भाव और गुरु की अनुकूल स्थिति।
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पुरुष की कुंडली में गुरु का लाभकारी स्थिति में होना।
संतान प्राप्ति में विलंब या बाधा के योग:
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पंचम भाव में शनि, राहु या केतु जैसे पाप ग्रहों का प्रभाव।
- पंचम भाव का स्वामी नीच का हो या पाप ग्रहों के साथ हो।
- पंचम भाव का स्वामी अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो।
- गुरु पीड़ित हो या शत्रु राशि में हो।
- सप्तम भाव (विवाह भाव) या नवम भाव (भाग्य भाव) भी पीड़ित हों तो संतान सुख में बाधा आती है।
स्त्रियों की कुंडली में संतान योग:
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चंद्रमा, शुक्र और पंचम भाव की स्थिति विशेष महत्व रखती है।
- चंद्रमा यदि बलवान हो, पंचम भाव शुभ दृष्ट हो तो संतान योग मजबूत होता है।
- पंचम भाव या पंचमेश पर राहु/केतु का प्रभाव संतान में बाधा ला सकता है।
- मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं या गर्भधारण की परेशानी का संबंध पंचम भाव व शुक्र की स्थिति से होता है।
संतान की संख्या का अनुमान:
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पंचम भाव में जितने ग्रह हों, उतनी संतान की संभावना मानी जाती है।
यदि गुरु पंचम में हो तो पुत्र संतान की संभावना अधिक होती है।
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शुक्र, चंद्रमा, बुध – कन्या संतान की संभावना को दर्शाते हैं।
शुभ दशा और संतान प्राप्ति:
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शुभ दशा और संतान प्राप्ति: |
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पंचम भाव, पंचमेश, गुरु, चंद्र या शुक्र की दशा/अंतर्दशा में संतान प्राप्ति के योग बनते हैं।
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नवांश कुंडली की दशाएं भी संतान प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
उपाय यदि संतान में बाधा हो:
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बृहस्पति वार को व्रत रखना और केले के पेड़ की पूजा करना।
"संतान गोपाल मंत्र" का नियमित जाप करें:
“ॐ नमो भगवते जगत्प्रसूतये नमः”-
गुरु का बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” – 108 बार प्रतिदिन जाप करें।
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स्त्रियां हर गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर व्रत करें और गरीब कन्याओं को भोजन कराएं।
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शास्त्रीय उपाय जैसे की पुत्रदा एकादशी का व्रत।
संतान सुख जीवन का अनमोल वरदान है, और इसका योग किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यदि कुंडली में संतान योग नहीं दिखता या बाधा के संकेत हैं, तो व्यक्ति को धैर्य रखते हुए ज्योतिषीय उपाय और नियमित पूजा-पाठ से लाभ मिल सकता है।
यदि आप अपनी या अपने जीवनसाथी की कुंडली का संतान योग विश्लेषण करवाना चाहते हैं, तो किसी अनुभवी और प्रमाणित ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें। वह आपकी कुंडली देखकर सटीक मार्गदर्शन और उचित उपाय प्रदान कर सकते हैं।
सीमा तिवारी, विजय नगर, इंदौर
मैं और मेरे पति पिछले कई वर्षों से संतान प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। इंदौर के विजय नगर में स्थित एस्ट्रोलॉजर साहू जी से मिलने पर उन्होंने मेरी कुंडली में संतान भाव की स्थिति और संतान योग का विश्लेषण किया। उन्होंने राहु-केतु के कारण बने दोषों की पहचान कर सरल उपाय बताए। नियमित पूजा, व्रत और यंत्र के प्रयोग से कुछ ही महीनों में सकारात्मक परिणाम दिखने लगे। आज मैं गर्भवती हूं और इसका श्रेय मैं साहू जी को देती हूं।"
अजय शर्मा, बापट चौराहा, इंदौर
संतान में देरी को लेकर हम काफी परेशान थे। बापट चौराहा के पास एक मित्र की सलाह पर एस्ट्रोलॉजर साहू जी से संपर्क किया। उन्होंने मेरी पत्नी और मेरी दोनों की कुंडलियां देखकर बताया कि संतान भाव में शनि और चंद्र की युति के कारण बाधा आ रही थी। उन्होंने रत्न और विशेष मंत्रों के जाप का सुझाव दिया। हमने श्रद्धा से हर उपाय अपनाया और कुछ ही समय में हमारे जीवन में संतान सुख आया। अब भी हम नियमित उनसे मार्गदर्शन लेते हैं।"