किस ग्रह से जुड़ी है खेती और कृषि व्यवसाय?
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किस ग्रह से जुड़ी है खेती और कृषि व्यवसाय? |
भारतीय वैदिक ज्योतिष विज्ञान में प्रत्येक कार्य, व्यवसाय या जीवन के क्षेत्र को किसी न किसी ग्रह के साथ जोड़ा गया है। चाहे वह शिक्षा हो, व्यापार हो, चिकित्सा हो या कृषि, प्रत्येक कर्म और उसका फल ग्रहों की स्थिति और प्रभाव पर निर्भर करता है। इसी संदर्भ में यह जानना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि खेती और कृषि व्यवसाय से कौन-से ग्रह संबंधित हैं और उनकी भूमिका जीवन में कैसी होती है।
खेती केवल एक जीविका का साधन नहीं है, बल्कि यह भारत जैसे कृषि प्रधान देश की रीढ़ भी है। आज जब लोग पुनः प्रकृति की ओर लौट रहे हैं और जैविक खेती, प्राकृतिक कृषि जैसे विषयों पर ध्यान दे रहे हैं, तब यह जानना और भी जरूरी हो जाता है कि इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए कौन से ग्रह अनुकूल होने चाहिए। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि खेती और कृषि व्यवसाय किन ग्रहों से जुड़े हैं, इनकी भूमिका क्या है, और कौन-कौन से योग सफलता में सहायक होते हैं।
शनि ग्रह: मेहनत, भूमि और धैर्य का प्रतीक
जब हम यह प्रश्न करते हैं कि खेती और कृषि व्यवसाय से कौन-सा ग्रह जुड़ा है, तो सबसे पहले नाम आता है शनि ग्रह का। शनि को श्रम, परिश्रम, धीमी गति, अनुशासन और भूमि से जोड़कर देखा जाता है।
शनि की भूमिका:
शनि व्यक्ति को खेत, जमीन, मिट्टी, बीज और मेहनत से जोड़ता है।
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जिन लोगों की कुंडली में शनि शुभ स्थानों पर स्थित हो, विशेषकर चतुर्थ, दशम, द्वितीय या एकादश भाव में, वे खेती या भूमि आधारित कार्यों में रुचि लेते हैं।
शनि की दृष्टि और उसकी दशा यदि मजबूत हो, तो कृषि से जुड़ा व्यक्ति निरंतर उन्नति करता है, भले ही धीरे-धीरे ही सही।
विशेष योग:
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शनि यदि लग्नेश या दशमेश होकर चतुर्थ भाव में हो, तो व्यक्ति कृषि कार्यों में पारंगत होता है।
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शनि और चंद्रमा का संबंध व्यक्ति को जल-जमीन आधारित खेती से जोड़ता है।
इसलिए कहा जा सकता है कि शनि ग्रह खेती से जुड़ा मुख्य ग्रह है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो परंपरागत खेती और कृषि व्यवसाय से जुड़े होते हैं।
मंगल ग्रह: ऊर्जा, जमीन और उपकरणों का प्रतिनिधि
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मंगल ग्रह |
मंगल एक अग्नि तत्व ग्रह है, जिसे भूमि, ऊर्जा, मशीनरी और साहस का प्रतीक माना जाता है। खेती और कृषि व्यवसाय में मंगल की भूमिका भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी गई है, खासकर तब जब बात आधुनिक कृषि उपकरणों, ट्रैक्टर, सिंचाई व्यवस्था और खेती के लिए संघर्ष की हो।
मंगल की भूमिका:
मंगल भूमि का कारक भी है, अतः जमीन के स्वामित्व और उससे संबंधित विवादों को भी दर्शाता है।
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यदि कुंडली में मंगल शुभ हो, तो व्यक्ति खेती से जुड़ी आधुनिक तकनीकों को अपनाता है और तेज़ी से विकास करता है।
योग:
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चतुर्थ भाव में मंगल होना जमीन के मालिक होने का संकेत देता है।
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मंगल और शनि का शुभ संबंध व्यक्ति को खेती और श्रमिकों के प्रबंधन में दक्ष बनाता है।
इस तरह, मंगल भी उन व्यक्तियों के लिए अनुकूल ग्रह है जो आधुनिक कृषि व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
चंद्रमा: जल, पौधे और संवेदनशीलता का कारक
चंद्रमा को मन, भावनाओं और जल तत्व का प्रतिनिधि माना गया है। खेती में पानी का महत्व सर्वोपरि है। वर्षा, नहर, तालाब या कुएं सभी जल के स्रोत चंद्रमा के अधीन आते हैं।
चंद्रमा की भूमिका:
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चंद्रमा यदि कुंडली में शुभ हो और जल राशि (कर्क, मीन, वृश्चिक) में हो, तो व्यक्ति खेती के प्रति संवेदनशील रहता है।
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जिनकी कुंडली में चंद्रमा बलवान हो, वे सब्जियों, फूलों, फल, चाय, और औषधीय पौधों की खेती में रुचि लेते हैं।
विशेष दृष्टिकोण:
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चंद्रमा और शुक्र का संबंध व्यक्ति को जैविक और प्राकृतिक खेती और कृषि व्यवसाय की ओर प्रेरित करता है।
चंद्रमा की शुभ दशा वर्षा आधारित खेती के लिए अनुकूल मानी जाती है।
अतः यह कहना उचित होगा कि चंद्रमा खेती के उस पहलू से जुड़ा है जो जल और संवेदनशीलता पर आधारित होता है।.
बुध ग्रह: व्यापार, फसल प्रबंधन और बुद्धिमत्ता का प्रतीक
बुध ग्रह को वाणी, बुद्धि, लेखा-जोखा और व्यवसाय से संबंधित माना जाता है। जब बात कृषि व्यवसाय की आती है, तो केवल फसल उगाना ही नहीं, बल्कि उसका सही तरीके से विपणन (Marketing), भंडारण (Storage), और मुनाफा कमाना भी उतना ही जरूरी होता है।
बुध की भूमिका:
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बुध ग्रह यदि कुंडली में शुभ हो, तो व्यक्ति फसल के व्यापार, मंडी में दाम तय करने, बीज वितरण, और कृषि योजनाओं के प्रबंधन में कुशल होता है।
बुध और गुरु का संबंध व्यक्ति को कृषि योजनाओं का सलाहकार या अधिकारी बना सकता है।
योग:
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बुध, शुक्र और गुरु का त्रिकोण संबंध व्यक्ति को कृषि वैज्ञानिक, कृषि अधिकारी या कृषि शिक्षक बना सकता है।
इसलिए खेती और कृषि व्यवसाय में सफलता के लिए बुध का शुभ होना भी अत्यंत आवश्यक है।
गुरु ग्रह: कृषि ज्ञान और परंपरा का कारक
गुरु ग्रह ज्ञान, विस्तार और समृद्धि का प्रतीक है। पारंपरिक खेती, आयुर्वेदिक कृषि, गौ आधारित खेती जैसी विधाओं में गुरु का प्रभाव विशेष रूप से देखा जाता है।
गुरु की भूमिका:
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गुरु यदि नवम भाव (धर्म), पंचम भाव (ज्ञान), या चतुर्थ भाव (भूमि) में हो, तो व्यक्ति कृषि के प्रति एक गहरी समझ रखता है।
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गुरु की शुभ दृष्टि व्यक्ति को परंपराओं के साथ विज्ञान का मेल सिखाती है, जिससे वह प्राकृतिक और आधुनिक खेती का संतुलन बनाए रखता है।
इस प्रकार, गुरु का संबंध उस मानसिकता से है जो खेती को केवल लाभ का साधन नहीं, बल्कि "धर्म" के रूप में देखती है।
कुंडली में भावों की भूमिका
अब जब हमने ग्रहों की चर्चा की है, तो यह समझना भी जरूरी है कि कुंडली के कौन-कौन से भाव खेती और कृषि व्यवसाय से जुड़े होते हैं:
भाव | भूमिका। |
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चतुर्थ | भूमि, खेती, जल स्रोत |
दशम | व्यवसाय और कर्म |
एकादश | लाभ और मुनाफा |
द्वितीय | कृषि उत्पाद और संपत्ति |
नवम | कृषि ज्ञान और भाग्य |
क्या सभी लोगों के लिए खेती लाभदायक होती है?
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क्या सभी लोगों के लिए खेती लाभदायक होती है? |
इस प्रश्न का उत्तर केवल कुंडली के विश्लेषण से ही दिया जा सकता है। हर व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति, भावों की मजबूती, दशा और गोचर का प्रभाव अलग होता है। कुछ लोगों के लिए यह क्षेत्र अत्यंत शुभ होता है, तो कुछ के लिए यह संघर्ष भरा हो सकता है।
जिनकी कुंडली में:
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चतुर्थ और दशम भाव मजबूत हो,
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शनि या मंगल शुभ दशा में हों,
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चंद्रमा जल राशि में हो,
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बुध और गुरु अनुकूल हों,
उनके लिए खेती न केवल लाभदायक, बल्कि आत्मिक संतोष का कारण भी बनती है।
सफलता के लिए ज्योतिषीय उपाय
यदि किसी की कुंडली में खेती से संबंधित ग्रह कमजोर हों या भाव अशुभ हों, तो कुछ उपायों से स्थिति को सुधारा जा सकता है:
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शनिवार को शनि से संबंधित दान करें (काला तिल, लोहे की वस्तुएं)
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मंगल के लिए मंगलवार को हनुमान जी का पूजन करें
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चंद्रमा की शांति के लिए सोमवार को शिव अभिषेक करें
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बुध को शांत करने के लिए हरे मूंग का दान करें
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भूमि पर हल्दी और दूध का छिड़काव करें
ये उपाय यदि श्रद्धा और नियमितता से किए जाएं, तो खेती और कृषि व्यवसाय में शुभ फल की प्राप्ति संभव है।
अब जब हमने विस्तार से समझा कि खेती और कृषि व्यवसाय किन ग्रहों से संबंधित है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह क्षेत्र केवल शारीरिक श्रम या आर्थिक योजना का परिणाम नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा और ग्रहों के संतुलन का भी परिणाम है।
शनि, जो जमीन और मेहनत का प्रतीक है;
मंगल, जो ऊर्जा और संसाधनों का प्रतिनिधि है;
चंद्रमा, जो जल और संवेदना का कारक है;
बुध, जो व्यापार और प्रबंधन में कुशल बनाता है;
और गुरु, जो ज्ञान और परंपरा से जोड़ता है —
इन सभी ग्रहों का सम्मिलित प्रभाव खेती और कृषि व्यवसाय को दिशा और सफलता देता है।
यदि इन ग्रहों की स्थिति कुंडली में अनुकूल हो, तो व्यक्ति इस क्षेत्र में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। अतः यह सलाह दी जाती है कि यदि आप या आपके परिवार के सदस्य कृषि से जुड़े हैं, तो एक योग्य ज्योतिषी से कुंडली का विश्लेषण अवश्य कराएं।
रामचंद्र पटेल, राजेंद्र नगर, इंदौर
"मैं खेती का काम करता हूँ, लेकिन पिछले कुछ सालों से फसल में लगातार नुकसान हो रहा था। काफी परेशान होकर मैंने विजय नगर, इंदौर के एस्ट्रोलॉजर साहू जी से संपर्क किया। उन्होंने मेरी कुंडली देखकर बताया कि शनि और मंगल की स्थिति ठीक नहीं है, जिससे कृषि में रुकावटें आ रही हैं। साहू जी ने कुछ विशेष उपाय और पूजा विधि बताई। जैसे-जैसे मैंने वो उपाय करने शुरू किए, मेरी फसल में सुधार आने लगा। आज मेरी खेती फिर से लाभदायक हो गई है। अगर आप भी कृषि व्यवसाय में परेशानी झेल रहे हैं, तो एस्ट्रोलॉजर साहू जी से ज़रूर मिलिए!"
शिवनारायण वर्मा, बेटमा, इंदौर
"खेती करते हुए अचानक कई सालों तक फसल खराब हो रही थी और कर्ज बढ़ता जा रहा था। तभी गांव के एक जानकार ने मुझे विजय नगर, इंदौर के एस्ट्रोलॉजर साहू जी का नाम बताया। जब मैं उनसे मिला, तो उन्होंने मेरी कुंडली देखकर बताया कि मंगल और शनि की दशा कमजोर है, जिससे खेती में नुकसान हो रहा है। उन्होंने कुछ सरल उपाय और मंगलवार के व्रत करने की सलाह दी। कुछ ही महीनों में खेत की स्थिति सुधरने लगी और पैदावार भी बढ़ गई। अब मैं पहले से आत्मविश्वास से भरा हूँ। खेती से जुड़े लोगों को मैं साहू जी की सलाह जरूर लेने की सिफारिश करता हूँ।"