गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं:

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं:

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गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं:

भारतीय संस्कृति में "गुरु" का स्थान सर्वोच्च माना गया है। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, और पुराणों में गुरु की महिमा का विशेष वर्णन किया गया है। इसी गुरु-तत्व को सम्मान देने हेतु गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व केवल श्रद्धा का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मबोध और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी है।

इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं, जिनमें से कई हमारे शास्त्रों और ग्रंथों में वर्णित हैं। इन पवित्र कथाओं के माध्यम से हमें गुरु के महत्व और गुरु-शिष्य परंपरा की गहराई का आभास होता है।

गुरु पूर्णिमा क्या है?

गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। यह दिन महान ऋषि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने चारों वेदों का विभाजन कर मानव जाति को दिव्य ज्ञान प्रदान किया। इसी कारण उन्हें आदि गुरु कहा जाता है।

यह दिन विशेष रूप से विद्यार्थियों, साधकों और गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास रखने वालों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं

पवित्र कथाएं:

नीचे प्रस्तुत हैं गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं, जो न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक विकास में भी सहायक हैं।

वेदव्यास जी की कथा – आदि गुरु का प्रादुर्भाव

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाओं में सबसे प्रमुख कथा वेदव्यास जी की मानी जाती है। वे पराशर मुनि और सत्यवती के पुत्र थे। उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया— ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इसके अतिरिक्त उन्होंने महाभारत, श्रीमद्भागवत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र आदि ग्रंथों की रचना की।

उन्होंने ज्ञान को व्यवस्थित कर मनुष्य के लिए समझने योग्य बनाया, और यही कार्य उन्हें गुरु के रूप में स्थापित करता है। इसी कारण उनके जन्म दिवस को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

महाभारत में द्रोणाचार्य और अर्जुन की गुरु-शिष्य कथा

पवित्र कथाओं में द्रोणाचार्य का उल्लेख अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे कौरवों और पांडवों के गुरु थे। अर्जुन को उन्होंने श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने हेतु कई विशेष शिक्षाएं दीं।

एक घटना के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य ने एक बार सभी शिष्यों को एक चिड़िया की आंख पर निशाना लगाने का अभ्यास कराया। जब उन्होंने अर्जुन से पूछा कि उसे क्या दिख रहा है, तो उसने उत्तर दिया— “मुझे केवल चिड़िया की आंख दिख रही है।” यह गुरु की शिक्षा के प्रति उसकी एकनिष्ठता और एकाग्रता को दर्शाता है।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं इस बात पर बल देती हैं कि सच्चा शिष्य वही है जो अपने गुरु के मार्गदर्शन में पूर्ण समर्पण से आगे बढ़े।

कबीरदास और रामानंद की कथा

कबीरदास जी, जिन्हें संतों की परंपरा में अत्यंत ऊंचा स्थान प्राप्त है, अपने गुरु श्री रामानंद जी के प्रति अत्यंत श्रद्धावान थे।

कथा है कि कबीरदास जी एक सामान्य जुलाहे के घर जन्मे थे। वे श्री रामानंद जी को गुरु बनाना चाहते थे, परंतु सामाजिक भेदभाव के कारण उन्हें सीधे स्वीकार नहीं किया गया। एक रात उन्होंने पंचगंगा घाट पर रामानंद जी के आने का समय जानकर सीढ़ियों पर लेट गए। जब रामानंद जी आए और उनका पैर कबीर पर पड़ा, तो उन्होंने अनायास कहा – "राम-राम कहो।" उसी पल को कबीरदास ने गुरु दीक्षा का क्षण मान लिया।

यह पवित्र कथा दर्शाती है कि यदि शिष्य का भाव शुद्ध हो तो गुरु स्वयं उसके जीवन में प्रकट हो जाते हैं।

एकलव्य की गुरु भक्ति

महाभारत की एक अत्यंत मार्मिक कथा है – एकलव्य की। वह निषाद राज का पुत्र था और गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या सीखना चाहता था। परंतु द्रोणाचार्य ने उसे क्षत्रिय न मानते हुए शिक्षा देने से इनकार कर दिया।

तब एकलव्य ने उनकी एक मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की और आत्म-अनुशासन से धनुर्विद्या में पारंगत हो गया। जब द्रोणाचार्य ने उसकी कला देखी, तो उन्होंने गुरु-दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया। एकलव्य ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना अंगूठा दे दिया।

यह गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं में अद्भुत स्थान रखती है, जो गुरु के प्रति समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करती है।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस

स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की कथा आधुनिक भारत के आध्यात्मिक इतिहास में एक अनुपम स्थान रखती है। 

नरेंद्र (विवेकानंद) प्रारंभ में तर्कवादी थे और ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाते थे। लेकिन जब वे रामकृष्ण परमहंस से मिले, तो उनके सान्निध्य में उन्हें न केवल ईश्वर का अनुभव हुआ, बल्कि उन्होंने आत्मसाक्षात्कार भी किया।

पवित्र कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि सच्चा गुरु ही शिष्य के भीतर छिपे ईश्वर तत्व को जाग्रत करता है।

गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व

गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, यह आत्मबोध की यात्रा की शुरुआत है। इस दिन शिष्य अपने गुरु को स्मरण कर उनकी कृपा के प्रति आभार प्रकट करता है।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं हमें बताती हैं कि बिना गुरु के आत्मज्ञान असंभव है। चाहे वह वेदव्यास हों, द्रोणाचार्य, रामानंद या रामकृष्ण परमहंस – इन सभी गुरुओं की विशेषता यह रही कि उन्होंने अपने शिष्यों को दिव्यता की ओर उन्मुख किया।

गुरु की महिमा शास्त्रों में

  • गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।
    गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

  • उपनिषदों में कहा गया है – "श्रद्धावान् लभते ज्ञानं" यानी जिस शिष्य में श्रद्धा होती है, वही ज्ञान प्राप्त करता है।

गुरु के बिना जीवन में तनाव

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी के अनुसार जब व्यक्ति मार्गदर्शन के अभाव में चलता है, तब उसके जीवन में असमंजस, भटकाव और मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। गुरु न केवल दिशा दिखाता है, बल्कि तनाव से उबारकर जीवन को संतुलन देता है।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं यही सिखाती हैं कि शिष्य को सदैव एक योग्य गुरु की शरण में रहना चाहिए ताकि वह जीवन के संकटों और तनाव से सुरक्षित रह सके।

गुरु पूर्णिमा से जुड़ी पवित्र कथाएं केवल कहानियां नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जीवन की प्रेरणाएं हैं। वे हमें सिखाती हैं कि सच्चे ज्ञान, आत्मबोध और मोक्ष की ओर जाने के लिए गुरु की आवश्यकता अनिवार्य है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें यह अवसर देता है कि हम अपने जीवन में गुरु के महत्व को समझें, उनके उपदेशों पर चलें और अपने भीतर छिपी दिव्यता को पहचानें।

पवित्र कथाएं समय के साथ भले ही बदल जाएं, पर उनमें निहित सत्य शाश्वत रहता है। और यही सत्य हमें गुरु पूर्णिमा जैसे पर्वों के माध्यम से प्राप्त होता है।

पूजा त्रिपाठी, राऊ, इंदौर
"मैं हर साल गुरु पूर्णिमा पर पूजा तो करती थी, लेकिन इसके पीछे की असली पवित्र कथाओं को नहीं जानती थी। इस बार मैं विजय नगर, इंदौर के प्रसिद्ध एस्ट्रोलॉजर साहू जी से मिलने गई और उन्होंने मुझे वेद व्यास जी और उनके द्वारा महाभारत की रचना की प्रेरणादायक कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं की कृपा पाने का सबसे शुभ समय होता है। साहू जी ने मुझे इस दिन विशेष मंत्र, दान और ध्यान विधि भी बताई, जिससे इस बार की गुरु पूर्णिमा मेरे लिए आध्यात्मिक रूप से बहुत खास बन गई। सच में, उनकी बातें आत्मा को शांति देती हैं।"

अनिल जोशी, स्कीम नंबर 78, इंदौर
"गुरु पूर्णिमा का महत्व तो मुझे पता था, लेकिन इसकी गहराई और शक्ति को मैंने एस्ट्रोलॉजर साहू जी से मिलकर ही समझा। उन्होंने मुझे एक खास कथा सुनाई जिसमें भगवान शिव को पहला गुरु माना गया और उन्होंने सप्तऋषियों को ज्ञान दिया। साहू जी ने बताया कि इस दिन गुरु के प्रति समर्पण और उनका आशीर्वाद जीवन की बाधाओं को दूर करता है। उनकी बताई पूजा विधि अपनाने के बाद मेरे जीवन में बहुत सकारात्मक बदलाव आए हैं। गुरु पूर्णिमा का असली अनुभव मुझे साहू जी के माध्यम से ही मिला।"

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