भाग्य से शादी या कर्म से? कुंडली क्या कहती है?
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भाग्य से शादी या कर्म से? कुंडली क्या कहती है? |
विवाह, भारतीय जीवन दर्शन में एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। यह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन होता है, बल्कि दो आत्माओं और दो परिवारों का भी संबंध होता है। लेकिन एक सवाल जो अक्सर मन में आता है वह है—भाग्य से शादी या कर्म से? क्या हमारा विवाह पहले से तय है या हमारे कर्म ही जीवनसाथी को आकर्षित करते हैं? क्या कुंडली इस रहस्य का उत्तर दे सकती है? आइए इस विषय को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विस्तार से समझते हैं।
भाग्य से शादी या कर्म से? – यह सवाल क्यों उठता है?
जब किसी व्यक्ति की शादी में बार-बार रुकावटें आती हैं, या बहुत अच्छे गुणों के बावजूद सही जीवनसाथी नहीं मिल पाता, तो यह प्रश्न उठता है—भाग्य से शादी या कर्म से? इसी तरह, कुछ लोगों की शादी बहुत कम उम्र में हो जाती है और सफल भी रहती है, तो कुछ की शादी देर से या संघर्षपूर्ण होती है। ऐसे में कई लोग सोचते हैं कि क्या विवाह भाग्य में लिखा होता है या यह हमारे कर्मों का परिणाम है?
कुंडली में विवाह के योग कैसे दिखते हैं?
कुंडली में 7वां भाव (House of Marriage) विवाह से संबंधित मुख्य स्थान होता है। इस भाव में बैठे ग्रह, उस पर दृष्टि डालने वाले ग्रह, और भाव का स्वामी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति को दर्शाते हैं। इसके अलावा, नवांश कुंडली (D-9 chart) भी विवाह के गहरे विश्लेषण के लिए देखी जाती है।
जब 7वें भाव में शुभ ग्रह होते हैं और उस भाव पर शुभ दृष्टि पड़ती है, तो विवाह जल्दी और सुखद होता है। परंतु यदि यहां पाप ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु, मंगल आदि हों, या शनि की ढैय्या/साढ़ेसाती चल रही हो, तो विवाह में देरी या बाधाएं आती हैं।
यहां प्रश्न उठता है—क्या यह सब भाग्य से हो रहा है या यह सब हमारे पिछले या वर्तमान जीवन के कर्म हैं?
कर्म और भाग्य का संबंध
ज्योतिष के अनुसार, भाग्य और कर्म एक-दूसरे के पूरक हैं। कुंडली भाग्य का प्रतिनिधित्व करती है, जो हमारे पूर्वजन्म के कर्मों का फल है। लेकिन वर्तमान जन्म के कर्म ही उस भाग्य को सक्रिय या निष्क्रिय करते हैं।
भाग्य से शादी या कर्म से? इस प्रश्न का उत्तर यही है:
"भाग्य आपके लिए योग बनाता है, लेकिन उन योगों को साकार करने का कार्य कर्म करता है।"
उदाहरण के लिए:
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अगर आपकी कुंडली में विवाह का अच्छा योग है लेकिन आप व्यवहार में अहंकारी हैं, समझौता नहीं करते, या विवाह में रूचि नहीं दिखाते, तो वो योग निष्क्रिय रह जाता है।
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वहीं यदि कुंडली में थोड़ी बाधाएं हों लेकिन आप संयम, विनम्रता और विश्वास के साथ चलें, तो विवाह सफल होता है।
कर्म का प्रभाव विवाह पर
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कर्म का प्रभाव विवाह पर |
कर्म तीन प्रकार के माने जाते हैं:
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संचित कर्म – जो कई जन्मों से संचित होते आए हैं।
प्रारब्ध कर्म – जो इस जन्म में फल देने के लिए तैयार हैं (यही भाग्य है)।
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क्रियामाण कर्म – जो हम इस जन्म में कर रहे हैं।
विवाह से जुड़ी समस्याएं प्रारब्ध कर्मों का परिणाम हो सकती हैं, लेकिन क्रियामाण कर्म से उन्हें बदला जा सकता है। यानी अगर कुंडली में कोई बाधा है, तो उसका उपाय संभव है।
विवाह में ग्रहों का योगदान
विवाह में कई ग्रहों का योगदान होता है:
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शुक्र – प्रेम, आकर्षण और वैवाहिक सुख का कारक।
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गुरु (बृहस्पति) – कन्या के लिए विवाह का संकेतक ग्रह।
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मंगल – यदि यह दोषपूर्ण हो (मंगल दोष), तो वैवाहिक जीवन में समस्याएं।
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राहु-केतु – भ्रम, गलत निर्णय और मानसिक भ्रम पैदा करते हैं।
यदि कुंडली में यह ग्रह नकारात्मक स्थिति में हैं, तो यह जीवनसाथी के मिलने या विवाह में विलंब का कारण बनते हैं। तब सवाल फिर वही—भाग्य से शादी या कर्म से? —यदि आप उपाय करें, तो नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
विवाह के बाधक योग
कुंडली में निम्न योग विवाह में विलंब या असफलता का संकेत देते हैं:
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7वें भाव में राहु/केतु का प्रभाव।
शनि की दृष्टि या 7वें भाव में स्थित होना।
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मंगल दोष – विशेष रूप से तब जब दोनों पक्षों में समान नहीं हो।
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शुक्र की स्थिति खराब हो तो दाम्पत्य सुख में कमी।
इन सभी स्थितियों में प्रश्न उठता है:
क्या विवाह टल सकता है? क्या कुंडली का दोष सबकुछ तय करता है?
उत्तर है: नहीं, यदि आप कर्म और उपाय करें, तो स्थिति बदल सकती है।
भाग्य से शादी या कर्म से? – ज्योतिषीय उपाय
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भाग्य से शादी या कर्म से? – |
अगर आपकी कुंडली विवाह में बाधा दिखा रही है, तो निम्न उपाय करें:
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गुरुवार का व्रत करें (विशेष रूप से कन्याओं के लिए)।
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शुक्रवार को माता लक्ष्मी को सफेद वस्त्र अर्पित करें।
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रुद्राभिषेक करें, विशेषकर यदि चंद्रमा पीड़ित हो।
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मंगल दोष निवारण के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करें।
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कुंभ विवाह/नारियल विवाह जैसे शास्त्रीय उपाय अपनाएं।
इन उपायों से कर्म बलवान होता है, और भाग्य के निष्क्रिय योग भी सक्रिय होने लगते हैं।
भाग्य से शादी या कर्म से? — इसका उत्तर न तो पूरी तरह भाग्य है और न ही पूरी तरह कर्म। कुंडली एक दिशा संकेतक है, लेकिन राह पर चलना या न चलना हमारे कर्म पर निर्भर करता है।
कुंडली भाग्य को दर्शाती है और उपाय, पूजा-पाठ, आत्ममंथन व संयम हमारे कर्म को मजबूत करते हैं।
इसलिए यदि आपके विवाह में कोई बाधा है, तो खुद को दोष न दें। अपनी कुंडली का विश्लेषण कराएं, अपने कर्म को सुधारें, और विश्वास रखें कि सही समय पर सही जीवनसाथी अवश्य मिलेगा।
राधिका मिश्रा, महू नाका, इंदौर
"मेरी शादी में बार-बार अड़चनें आ रही थीं। कई लोग कहते थे कि ये भाग्य का खेल है। लेकिन जब मैं विजय नगर स्थित एस्ट्रोलॉजर साहू जी से मिली, तब उन्होंने मेरी कुंडली देखकर बताया कि कर्म और ग्रह दशा दोनों का मिश्रित प्रभाव है। उन्होंने कुछ विशेष उपाय और पूजा बताई। कुछ ही महीनों में मेरे विवाह की बात पक्की हो गई। इंदौर में विवाह से जुड़ी कुंडली की सही जानकारी के लिए साहू जी से बेहतर कोई नहीं।"
अमित राठौर ,पलासिया, इंदौर
"मैं सोचता था कि मेरी शादी सिर्फ मेरे कर्मों से ही तय होगी, लेकिन साहू जी ने कुंडली देखकर बताया कि भाग्य में विवाह का योग पहले से था, पर कुछ ग्रहों की स्थिति बाधा डाल रही थी। उन्होंने पूजा, रत्न और व्रत का सुझाव दिया। विजय नगर, इंदौर में स्थित साहू जी के मार्गदर्शन से मेरा रिश्ता तय हुआ और अब मैं खुशहाल वैवाहिक जीवन जी रहा हूँ।"