कौन-सा ग्रह व्यक्ति को अचानक प्रसिद्धि दिला सकता है?

कौन-सा ग्रह व्यक्ति को अचानक प्रसिद्धि दिला सकता है?

कौन-सा ग्रह व्यक्ति को अचानक प्रसिद्धि दिला सकता है?

प्रसिद्धि, सफलता और नाम की चाह हर व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। कुछ लोग मेहनत के साथ धीरे-धीरे प्रसिद्धि पाते हैं, तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें अचानक प्रसिद्धि मिल जाती है। यह अचानक मिलने वाली सफलता या शोहरत केवल कर्म का परिणाम नहीं होती, बल्कि इसके पीछे ग्रहों की एक सशक्त भूमिका होती है। भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब कुछ विशेष ग्रह एक विशिष्ट स्थिति में आ जाते हैं, तब व्यक्ति को अप्रत्याशित प्रसिद्धि, पद, और सम्मान प्राप्त होता है। इस लेख में  इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जानेंगे कि कौन-सा ग्रह व्यक्ति को अचानक प्रसिद्धि दिला सकता है और किन योगों से यह संभव होता है।

प्रसिद्धि का ज्योतिषीय आधार

ज्योतिष के अनुसार, किसी व्यक्ति की प्रसिद्धि उसके जन्म कुंडली के तीन मुख्य तत्वों पर निर्भर करती है –

  • दशम भाव (10वां घर) – यह कर्म, पद, और समाज में प्रतिष्ठा का सूचक होता है।

  • लग्न भाव (1वां घर) – यह व्यक्ति की पहचान और प्रभाव को दर्शाता है।
  • पंचम और नवम भाव (5वां और 9वां घर) – ये भाग्य, सृजनशीलता और शुभ कर्मों से जुड़ते हैं।

जब इन भावों में शुभ ग्रहों की स्थिति बनती है, या इनसे संबंधित ग्रह अपनी दशा या गोचर में सक्रिय होते हैं, तो व्यक्ति को अचानक प्रसिद्धि मिलने की संभावना बढ़ जाती है।

सूर्य – प्रसिद्धि और नेतृत्व का ग्रह

सूर्य ग्रह को आत्मा, प्रतिष्ठा, और नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है। जब सूर्य मजबूत स्थिति में होता है, जैसे कि उच्च राशि (मेष) में या दशम भाव में स्थित होता है, तब व्यक्ति को समाज में पहचान और सम्मान प्राप्त होता है। सूर्य की दशा या महादशा चलने पर व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता का विकास होता है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि सूर्य दशम भाव में बुध या गुरु के साथ हो, तो यह व्यक्ति को राजनीतिक, प्रशासनिक या सामाजिक क्षेत्र में प्रसिद्धि प्रदान कर सकता है।

चंद्र – जनप्रियता और जनसंपर्क का कारक

चंद्रमा मन और जनसंपर्क का ग्रह है। जिनकी कुंडली में चंद्रमा शुभ स्थिति में हो, विशेषकर लग्न या दशम भाव में, वे व्यक्ति आम जनता के बीच लोकप्रिय होते हैं। यह लोकप्रियता फिल्मों, मीडिया, या कला के क्षेत्र में अत्यधिक लाभ देती है।
जब चंद्रमा पर बृहस्पति या शुक्र की दृष्टि पड़ती है, तब व्यक्ति के आकर्षण और सार्वजनिक छवि में वृद्धि होती है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, चंद्रमा की प्रबलता व्यक्ति को जनसमर्थन और भावनात्मक जुड़ाव दिलाती है, जिससे प्रसिद्धि स्वतः प्राप्त होती है।

बृहस्पति – ज्ञान और सम्मान का ग्रह

बृहस्पति को "गुरु" कहा गया है और यह ज्ञान, आशीर्वाद, और समाज में प्रतिष्ठा से संबंधित ग्रह है। यदि बृहस्पति पंचम या दशम भाव में स्थित हो और अपनी उच्च राशि (कर्क या धनु) में हो, तो व्यक्ति समाज में अपने ज्ञान, धर्म या शिक्षा से प्रसिद्धि अर्जित करता है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि बृहस्पति की महादशा या अंतर्दशा में व्यक्ति का नाम समाज में आदर्श और प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

शुक्र – कला और मनोरंजन से मिलने वाली प्रसिद्धि

शुक्र ग्रह सुंदरता, कला, संगीत, और विलासिता का कारक माना जाता है। जिनकी कुंडली में शुक्र पंचम, दशम या एकादश भाव में स्थित हो, वे व्यक्ति कला, अभिनय, फैशन, या मनोरंजन के क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं।
यदि शुक्र पर राहु या चंद्र की दृष्टि हो, तो व्यक्ति को अचानक और बड़ी प्रसिद्धि मिलती है, विशेष रूप से फिल्म या ग्लैमर की दुनिया में। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, ऐसे लोग जीवन में विलासिता, शोहरत और ऐश्वर्य से भरा जीवन जीते हैं।

राहु – अचानक प्रसिद्धि और विदेशी पहचान का कारक

राहु को ‘मायाजाल’ और ‘भ्रम’ का ग्रह कहा गया है, लेकिन यह अचानक प्रसिद्धि और अप्रत्याशित उपलब्धियों का भी प्रतीक है। जब राहु दशम भाव में स्थित होता है या सूर्य, शुक्र या बुध के साथ युति बनाता है, तो व्यक्ति को अचानक और असामान्य प्रसिद्धि मिलती है।
यह प्रसिद्धि कभी-कभी विवादों के कारण भी हो सकती है, लेकिन इससे व्यक्ति का नाम चारों ओर फैल जाता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, राहु आधुनिक तकनीक, सोशल मीडिया, और ग्लोबल स्तर पर प्रसिद्धि देने में सक्षम ग्रह है।

शनि – स्थायी प्रसिद्धि और कर्मफल का कारक

शनि को कर्म और न्याय का ग्रह कहा जाता है। यह व्यक्ति को मेहनत, धैर्य और संघर्ष के बाद स्थायी प्रसिद्धि देता है। जब शनि दशम भाव या एकादश भाव में होता है, तब व्यक्ति की सफलता धीरे-धीरे बढ़ती है लेकिन दीर्घकालिक होती है।
शनि की दशा में मिलने वाली प्रसिद्धि स्थायी और सम्मानजनक होती है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि जिनकी कुंडली में शनि उच्च (तुला) में होता है, वे व्यक्ति समाज में कार्य के प्रति समर्पण और ईमानदारी से महानता प्राप्त करते हैं।

बुध – संचार, बुद्धिमत्ता और मीडिया से जुड़ी प्रसिद्धि

बुध ग्रह वाणी, लेखन, संचार और व्यापार का कारक है। यदि यह ग्रह शुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति अपनी वाणी, लेखन या बुद्धिमत्ता से प्रसिद्धि प्राप्त करता है। मीडिया, पत्रकारिता, लेखन और व्यवसायिक जगत में बुध की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, बुध की दशा में व्यक्ति अपनी संवाद कला और तार्किक क्षमता से लोगों को प्रभावित करता है और समाज में मान्यता प्राप्त करता है।

प्रसिद्धि देने वाले विशेष योग

  • राजयोग – जब दशम भाव के स्वामी और लग्नेश शुभ स्थिति में होते हैं।

  • गजकेसरी योग – चंद्र और गुरु की युति व्यक्ति को आदरणीय और सम्मानित बनाती है।
  • धन योग – यह व्यक्ति को न केवल आर्थिक लाभ बल्कि नाम और शोहरत भी दिलाता है।
  • राहु–सूर्य योग – यह अचानक प्रसिद्धि और लोकप्रियता का योग बनाता है।

इन योगों की स्थिति और समय व्यक्ति की कुंडली के ग्रहों की दशा और गोचर के अनुसार प्रभाव डालती है।

कैसे जानें आपकी कुंडली में प्रसिद्धि के योग हैं या नहीं

यदि आप जानना चाहते हैं कि आपकी कुंडली में प्रसिद्धि या पहचान प्राप्त करने के योग हैं या नहीं, तो एक अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श लेना अत्यंत आवश्यक है। ग्रहों की स्थिति, उनकी दृष्टि और दशा—अंतर्दशा को देखकर ही सही विश्लेषण किया जा सकता है।
इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, हर व्यक्ति की कुंडली अलग होती है। इसलिए प्रसिद्धि का समय और तरीका भी अलग-अलग होता है।

प्रसिद्धि किसी एक ग्रह के कारण नहीं बल्कि पूरे ग्रहयोग के सम्मिलित प्रभाव से प्राप्त होती है। सूर्य व्यक्ति को नेतृत्व देता है, चंद्र उसे जनप्रिय बनाता है, राहु उसे अचानक प्रसिद्धि दिलाता है, और शनि उसे स्थायित्व प्रदान करता है।
अगर आपकी कुंडली में इन ग्रहों की स्थिति मजबूत है, तो निश्चित रूप से जीवन में किसी न किसी समय आप प्रसिद्धि प्राप्त करेंगे।
यदि आप यह जानना चाहते हैं कि आपकी कुंडली में कौन-सा ग्रह प्रसिद्धि का कारण बनेगा, तो भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी से ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लें।

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सूर्य और चंद्र योग का जीवन पर क्या असर होता है?

सूर्य और चंद्र योग का जीवन पर क्या असर होता है?

सूर्य और चंद्र योग का जीवन पर क्या असर होता है?

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्रमा को दो अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। इन्हें जन्म कुंडली का आधार भी कहा जाता है क्योंकि ये व्यक्ति के जीवन, व्यक्तित्व, मानसिक स्थिति, स्वास्थ्य और भाग्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। सूर्य और चंद्र योग का सही या असंतुलित होना व्यक्ति के जीवन में सुख, सफलता, मानसिक शांति और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, सूर्य और चंद्र योग का प्रभाव व्यक्ति के संपूर्ण जीवन पथ और उसके करियर, परिवार और संबंधों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

सूर्य का महत्व और प्रभाव

सूर्य शक्ति, आत्मविश्वास, नेतृत्व, पिता, करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक ग्रह है। कुंडली में सूर्य की स्थिति व्यक्ति के आत्मविश्वास, निर्णय लेने की क्षमता और सामाजिक प्रभाव को दर्शाती है।

  • यदि सूर्य मजबूत और शुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति में साहस, नेतृत्व क्षमता, आत्मसम्मान और कार्यक्षमता स्वाभाविक रूप से विकसित होती है।

  • सूर्य कमजोर या अशुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी, निर्णय में अस्थिरता, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और पिता या वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ संघर्ष का अनुभव कर सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि सूर्य की दृष्टि और शुभ योग जीवन में स्थायी प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी भी कहते हैं कि सूर्य के अनुकूल योग होने से करियर और सामाजिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

चंद्रमा का महत्व और प्रभाव

 चंद्रमा मानसिक स्थिति, भावनाओं, मानसिक शांति, मातृस्नेह और मनोबल का प्रतीक है। चंद्र योग व्यक्ति के मनोविज्ञान, संवेदनशीलता और मानसिक स्थिरता को प्रभावित करता है।

  • यदि चंद्रमा शुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति मानसिक रूप से स्थिर, संवेदनशील, और निर्णय लेने में संतुलित होता है।

  • अशुभ या कमजोर  चंद्रमा व्यक्ति को तनाव, मानसिक अस्थिरता, भावनात्मक असंतुलन और नींद संबंधी समस्याएं दे सकता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि चंद्र योग का अनुकूल होना मानसिक स्वास्थ्य और परिवार में सुख-शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सूर्य और चंद्र योग का संयोजन

जब सूर्य और चंद्र योग कुंडली में उचित स्थिति में होते हैं, तो यह जीवन में समग्र संतुलन और सफलता का संकेत देता है। इस संयोजन से व्यक्ति न केवल मानसिक रूप से स्थिर होता है, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा, करियर और व्यक्तिगत संबंधों में भी सफलता प्राप्त करता है।

  • सूर्य + चंद्र योग शुभ होने पर: आत्मविश्वास, मानसिक स्थिरता, करियर में सफलता, परिवार और विवाह जीवन में संतुलन।

  • सूर्य + चंद्र योग अशुभ होने पर: मानसिक तनाव, पारिवारिक कलह, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और करियर में अवरोध।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि सूर्य और चंद्र योग का अध्ययन करते समय इनके भाव, स्थिति और अन्य ग्रह की दृष्टि भी अवश्य देखनी चाहिए। यह योग अकेले ही जीवन के सभी पहलुओं को नियंत्रित नहीं करता, बल्कि इसे अन्य ग्रह योगों और दशाओं के साथ संतुलित करके देखा जाना चाहिए।

सूर्य और चंद्र योग के विभिन्न प्रकार

  • सूर्य उच्च योग – यदि सूर्य मेष या सिंह राशि में उच्च हो, तो यह व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता और साहस का संकेत देता है।

  • चंद्रमा उच्च योग – यदि चंद्रमा वृषभ या कर्क राशि में उच्च हो, तो यह मानसिक शांति, संवेदनशीलता और परिवार में सुख का सूचक होता है।
  • सूर्य-चंद्रमा युति – सूर्य और  चंद्रमा की युति से जन्मजात राजयोग या शक्ति योग बनता है। यह व्यक्ति को निर्णय लेने में साहस और मानसिक संतुलन दोनों प्रदान करता है।
  • अशुभ युति – सूर्य और चंद्रमा का अशुभ संयोजन व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक तनाव दे सकता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, अशुभ सूर्य-चंद्र योग होने पर ग्रह उपाय और मंत्र पाठ करके इसका प्रभाव कम किया जा सकता है।

सूर्य और चंद्र योग के उपाय

  • सूर्य योग के लिए – रोज सुबह सूर्य को अर्घ्य दें, लाल वस्त्र पहनें, सूर्य मंत्र “ॐ सूर्याय नमः” का जाप करें।

  • चंद्र योग के लिए – सोमवार को दूध और चाँदी का दान करें, चंद्र मंत्र “ॐ चंद्राय नमः” का पाठ करें।
  • सूर्य-चंद्र युति शांति उपाय – नियमित पूजा, हवन और ग्रह शांति के उपाय करें।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि सही उपाय करने से सूर्य और चंद्र योग का प्रभाव सकारात्मक रूप से जीवन में प्रकट होता है।

सूर्य और चंद्र योग का जीवन पर प्रभाव

  • करियर और प्रतिष्ठा – सूर्य मजबूत होने से करियर में प्रतिष्ठा और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।

  • मानसिक स्वास्थ्य –  चंद्रमा मजबूत होने से मानसिक स्थिरता और शांति बनी रहती है।
  • सामाजिक संबंध – दोनों ग्रहों का शुभ योग सामाजिक संबंधों और परिवार में संतुलन लाता है।
  • धन और सुख-शांति – सूर्य और चंद्र योग के सकारात्मक प्रभाव से आर्थिक और पारिवारिक सुख प्राप्त होता है।
  • स्वास्थ्य – सूर्य का मजबूत होना शारीरिक शक्ति और प्रतिरक्षा बढ़ाता है, जबकि  चंद्रमा मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है।

सूर्य और चंद्र योग व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनके सकारात्मक योग से व्यक्ति में आत्मविश्वास, मानसिक स्थिरता, करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा में सफलता, और परिवार में सुख-शांति आती है। अशुभ योग होने पर मानसिक तनाव, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और सामाजिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, सूर्य और चंद्र योग का सही अध्ययन और ग्रहों के अनुसार उपाय जीवन में स्थायी सफलता और मानसिक शांति प्राप्त करने का मार्ग है। केवल इन उपायों और संतुलित जीवनशैली के माध्यम से व्यक्ति सूर्य और चंद्र योग के पूर्ण लाभ का अनुभव कर सकता है।

इसलिए, सूर्य और चंद्र योग का अध्ययन, ग्रहों की स्थिति का सही मूल्यांकन और उपाय करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। 

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क्या भाग्य बदलने के लिए रत्न पहनना पर्याप्त है?

क्या भाग्य बदलने के लिए रत्न पहनना पर्याप्त है?

क्या भाग्य बदलने के लिए रत्न पहनना पर्याप्त है?

भाग्य हर व्यक्ति के जीवन में सफलता, सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि को निर्धारित करता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में यह माना जाता है कि व्यक्ति का भाग्य जन्म कुंडली में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति से तय होता है। इसके अतिरिक्त, ग्रहों के अनुकूल रत्न पहनने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और अवसर बढ़ते हैं। लेकिन क्या केवल रत्न पहनना ही भाग्य बदलने के लिए पर्याप्त है? भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, रत्न एक महत्वपूर्ण उपकरण है, लेकिन इसे सही दिशा, समय और ग्रह योग के अनुसार पहनना अत्यंत आवश्यक है।

रत्न पहनने का महत्व

ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक ग्रह का अपना विशेष रत्न और रंग होता है। ये रत्न ग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय करके व्यक्ति के भाग्य और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाते हैं।

  • सूर्य का रत्न – मूंगा : सूर्य शक्ति, नेतृत्व और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। मूंगा पहनने से आत्मविश्वास, सामाजिक प्रतिष्ठा और करियर में उन्नति होती है।

  • चंद्रमा का रत्न – मोती : चंद्रमा भावनाओं, मानसिक संतुलन और मानसिक शांति का प्रतिनिधि है। मोती पहनने से मानसिक तनाव कम होता है और निर्णय क्षमता में सुधार होता है।

  • मंगल का रत्न – माणिक्य : मंगल साहस, ऊर्जा और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। माणिक्य पहनने से साहसिक निर्णय और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

  • बुध का रत्न – पन्ना : बुध बुद्धि, संवाद क्षमता और रणनीतिक सोच का प्रतीक है। पन्ना पहनने से व्यवसाय और शिक्षा में सफलता मिलती है।

  • बृहस्पति का रत्न – पुखराज : बृहस्पति ज्ञान, धर्म और वित्तीय स्थिति का प्रतीक है। पुखराज पहनने से करियर, शिक्षा और धन के क्षेत्र में लाभ होता है।

  • शुक्र का रत्न – हीरा : शुक्र प्रेम, वैवाहिक जीवन और सौंदर्य का प्रतीक है। हीरा पहनने से प्रेम संबंध, सामाजिक स्थिति और वैवाहिक सुख बढ़ता है।

  • शनि का रत्न – नीला नीलम: शनि अनुशासन, कर्मफल और कष्टों से मुक्ति का प्रतीक है। नीला नीलम पहनने से जीवन में स्थिरता और करियर में मजबूती आती है।

  • राहु का रत्न – हरे ऐक्वामरीन: राहु अप्रत्याशित अवसर और मानसिक शक्ति देता है। पहनने से मानसिक भ्रम और अड़चनों से मुक्ति मिलती है।

  • केतु का रत्न – धूम्रपाषाण : केतु आध्यात्मिक ज्ञान और आत्म-निरीक्षण का प्रतिनिधि है। धूम्रपाषाण पहनने से जीवन में चतुराई और सुरक्षित निर्णय की क्षमता आती है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि रत्न पहनने से ग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, लेकिन यह केवल एक उपाय है।

रत्न पहनना पर्याप्त क्यों नहीं है

सिर्फ रत्न पहनने से भाग्य बदलने की उम्मीद करना गलत है। इसके पीछे कई कारण हैं:

  • सही ग्रह और सही रत्न – व्यक्ति की कुंडली में ग्रह की स्थिति, राशि और दशा के अनुसार ही रत्न चयन करना चाहिए। गलत रत्न पहनने से विपरीत प्रभाव भी हो सकता है।

  • सही समय और मंत्र – रत्न पहनते समय ग्रहों के अनुसार शुभ मुहूर्त और मंत्र का पाठ करना आवश्यक है। बिना मंत्र या अनुकूल समय के रत्न का प्रभाव सीमित होता है।
  • व्यक्तिगत कर्म और प्रयास – रत्न केवल ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करता है। जीवन में भाग्य को बदलने के लिए व्यक्ति को अपने कर्म और प्रयासों पर भी ध्यान देना चाहिए।
  • अन्य उपायों का सहारा – रत्न के साथ पूजा, हवन, दान और तंत्र-मंत्र के उपाय भी ग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाते हैं।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि रत्न पहनना एक उपकरण है, लेकिन भाग्य बदलने के लिए कुंडली का सही अध्ययन, ग्रहों के अनुसार उपाय और व्यक्तिगत प्रयास अनिवार्य हैं।

रत्न पहनने के सही तरीके

  • रत्न की शुद्धता और गुणवत्ता – रत्न प्राकृतिक और शुद्ध होना चाहिए। सिंथेटिक रत्न प्रभाव नहीं देते।

  • उचित मुहूर्त – रत्न को शुभ दिन और समय पर पहनना चाहिए। आमतौर पर रविवार, सोमवार या गुरुवार जैसे दिन ग्रह के अनुसार उत्तम माने जाते हैं।
  • मंत्र और पूजा – रत्न को पहनते समय संबंधित ग्रह का मंत्र पढ़ें। उदाहरण के लिए, सूर्य के लिए “ॐ सूर्याय नमः”, बृहस्पति के लिए “ॐ गुरवे नमः”।
  • अनुशासन और आचार – रत्न पहनने के बाद व्यक्ति को नैतिक जीवन और नियमित पूजा-अर्चना में ध्यान देना चाहिए।

रत्न और भाग्य में सम्बन्ध

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भाग्य ग्रहों की दशा, योग और नक्षत्रों पर निर्भर करता है। रत्न ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करके व्यक्ति को सकारात्मक अवसर और मानसिक स्थिरता देते हैं। उदाहरण के लिए:

  • सूर्य और माणिक्य – करियर और प्रतिष्ठा में वृद्धि।

  • चंद्रमा और मोती – मानसिक शांति और निर्णय क्षमता।

  • बृहस्पति और पुखराज – धन और शिक्षा में सफलता।

  • शनि और नीला नीलम – दीर्घकालीन स्थिरता और बाधाओं से मुक्ति।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि रत्न पहनने से ग्रहों की ऊर्जा सक्रिय होती है, लेकिन इसे कुंडली के अनुसार सही तरीके से पहनना ही वास्तविक सफलता की कुंजी है।

रत्न पहनना भाग्य बदलने का एक प्रभावशाली उपाय है, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं है। व्यक्ति के कर्म, प्रयास, जीवनशैली, पूजा और ग्रहों के अनुसार सही उपाय आवश्यक हैं। रत्न केवल ग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय करता है और अवसरों को लाभकारी बनाता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि यदि व्यक्ति ग्रहों के अनुसार उचित रत्न पहनता है, मंत्र का पाठ करता है और जीवन में सही दिशा अपनाता है, तो उसका भाग्य निश्चित रूप से सकारात्मक रूप से बदल सकता है।

इसलिए, रत्न पहनना भाग्य बदलने का प्रारंभिक और आवश्यक कदम है, लेकिन इसके साथ ग्रहों के अनुसार उपाय और आत्मिक प्रयास भी अनिवार्य हैं। सही संयोजन से ही जीवन में स्थायी सफलता, सुख, और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।

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कुंडली में कौन-से ग्रह व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता देते हैं?

कुंडली में कौन-से ग्रह व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता देते हैं?

कुंडली में कौन-से ग्रह व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता देते हैं?

नेतृत्व क्षमता हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल पद या शक्ति का विषय नहीं, बल्कि स्वभाव, निर्णय लेने की क्षमता और सामाजिक प्रभाव का परिणाम होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति, दृष्टि और योग उसे नेतृत्व गुण प्रदान या रोक सकते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, कुंडली में विशिष्ट ग्रह और भाव व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता विकसित करने में सहायक होते हैं।

नेतृत्व क्षमता से जुड़े भाव

कुंडली में नेतृत्व से संबंधित मुख्य भाव हैं — दशम भाव (10th house), मेष, सिंह और तुला राशि के स्वामी ग्रह, और लग्न भाव का स्वामी

  • दशम भाव कर्म, पद और प्रतिष्ठा का भाव है। यदि यह भाव मजबूत हो, व्यक्ति स्वाभाविक रूप से नेतृत्व के योग्य होता है।

  • लग्न और उसके स्वामी की स्थिति व्यक्ति के स्वभाव, निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास को दर्शाती है।

  • मेष, सिंह और तुला राशि के स्वामी ग्रह अक्सर व्यक्ति को साहसी, निर्णायक और प्रभावशाली बनाते हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि कुंडली में जब दशम भाव और लग्न स्वामी दोनों शुभ ग्रहों से युक्त हों, तब व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता स्वतः विकसित होती है।

सूर्य – नेतृत्व का प्रमुख ग्रह

सूर्य नेतृत्व का प्रधान ग्रह माना जाता है। यह शक्ति, आत्मविश्वास, सम्मान और सामाजिक प्रभाव का प्रतीक है। यदि सूर्य कुंडली में मजबूत हो और दशम भाव, लग्न या सिंह राशि में स्थित हो, तो व्यक्ति में नेतृत्व की स्वाभाविक क्षमता विकसित होती है।

  • मजबूत सूर्य व्यक्ति को अधिकार का बोध और दूसरों पर प्रभाव डालने की क्षमता देता है।

  • सूर्य कमजोर होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी या नेतृत्व में निर्णय लेने में संकोच हो सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि सूर्य की दृष्टि शुभ ग्रहों जैसे बृहस्पति या शुक्र से होने पर नेतृत्व के गुण और प्रभाव अधिक मजबूत होते हैं।

मंगल – साहस और निर्णायक क्षमता

मंगल साहस, सक्रियता और साहसी निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। यदि मंगल मजबूत हो और दशम भाव या मेष राशि में हो, तो व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में त्वरित निर्णय ले सकता है और टीम का नेतृत्व कर सकता है।

  • मंगल का शुभ प्रभाव व्यक्ति को संघर्ष और चुनौती में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

  • कमजोर मंगल या अशुभ स्थिति में व्यक्ति में आवेग, झुंझलाहट या अस्थिर निर्णय की प्रवृत्ति दिखाई देती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि मंगल और सूर्य का संयोजन व्यक्ति में साहसी और प्रभावशाली नेतृत्व क्षमता का संकेत होता है।

बृहस्पति – बुद्धि और नैतिक नेतृत्व

बृहस्पति ज्ञान, अनुभव और नैतिकता का प्रतीक है। कुंडली में बृहस्पति का शुभ प्रभाव व्यक्ति को दूरदर्शी बनाता है और नेतृत्व में न्यायप्रियता लाता है।

  • यदि बृहस्पति दशम भाव या लग्न के स्वामी पर दृष्टि डालता है, तो व्यक्ति न केवल प्रभावशाली होता है, बल्कि अपने अनुयायियों को सही मार्गदर्शन भी देता है।

  • अशुभ बृहस्पति व्यक्ति को निर्णय में अनिश्चित और नेतृत्व में असफल बना सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, बृहस्पति और सूर्य की संयुक्त स्थिति विशेष रूप से व्यवसायिक और सामाजिक नेतृत्व के लिए लाभकारी होती है।

बुध – संवाद और रणनीति

बुध संचार, रणनीति और बुद्धिमत्ता का ग्रह है। यदि यह दशम भाव, लग्न या व्यवसाय भाव में शुभ स्थिति में हो, तो व्यक्ति योजना बनाने और टीम को मार्गदर्शन देने में कुशल होता है।

  • बुध की शुभ स्थिति वाले लोग नेतृत्व में तर्कसंगत और संवादकुशल होते हैं।

  • कमजोर बुध या अशुभ दृष्टि व्यक्ति को नेतृत्व में भ्रमित और असफल बना सकती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि बुध की स्थिति विशेष रूप से टीम नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

शनि – धैर्य और अनुशासन

शनि अनुशासन, धैर्य और दीर्घकालीन सोच का प्रतीक है। नेतृत्व केवल निर्णय लेने का नाम नहीं, बल्कि कार्यों को धैर्यपूर्वक पूरा करने और अनुशासन बनाए रखने का नाम है।

  • शनि की शुभ स्थिति व्यक्ति को जिम्मेदार, गंभीर और भरोसेमंद बनाती है।

  • अशुभ शनि नेतृत्व में देरी, अस्थिरता और बाधाओं का कारण बन सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, शनि का सकारात्मक प्रभाव लंबे समय तक नेतृत्व करने की क्षमता देता है।

राहु और केतु – अप्रत्याशित और चुनौतीपूर्ण नेतृत्व

राहु और केतु छाया ग्रहहैं और अप्रत्याशित परिस्थितियों में नेतृत्व क्षमता को चुनौती देते हैं।

  • राहु व्यक्ति को अप्रत्याशित अवसर और वैश्विक दृष्टिकोण देता है।

  • केतु व्यक्ति को आत्मनिर्भर और सूक्ष्म दृष्टि वाला बनाता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि जब राहु और केतु के प्रभाव को समझकर उपाय किए जाते हैं, तो ये ग्रह भी व्यक्ति को विशिष्ट और प्रभावशाली नेतृत्व गुण प्रदान कर सकते हैं।

नेतृत्व योग के संकेत

कुंडली में कुछ विशिष्ट योग व्यक्ति को नेतृत्व क्षमता प्रदान करते हैं:

  • राजयोग – दशम भाव और लग्न स्वामी के शुभ संयोग से जन्मजात नेतृत्व गुण मिलते हैं।

  • सूर्य-मंगल युति – साहस और अधिकार का संयोजन।
  • बृहस्पति दृष्टि दशम भाव पर – नैतिक और दूरदर्शी नेतृत्व।
  • बुध की दृष्टि दशम भाव पर – रणनीतिक और संवादकुशल नेतृत्व।
  • शनि का शुभ प्रभाव – स्थिर और अनुशासित नेतृत्व।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि कुंडली में इन योगों की उपस्थिति व्यक्ति को प्रभावशाली नेता बनने की दिशा देती है।

नेतृत्व क्षमता बढ़ाने के उपाय

  • सूर्य के लिए उपाय – रोज सुबह सूर्य को अर्घ्य दें और रविवार को सूर्यमुखी या लाल वस्त्र दान करें।

  • मंगल दोष शांति – मंगलवार को हनुमान जी की पूजा और लाल वस्त्र या तांबे का दान करें।
  • बृहस्पति के लिए उपाय – गुरुवार को पीले वस्त्र पहनें और चने की दाल दान करें।
  • बुध के लिए उपाय – बुधवार को हरे वस्त्र पहनें, तुलसी के पौधे को जल दें।
  • शनि दोष शांति – शनिवार को तेल का दीपक जलाएं और गरीबों को दान दें।
  • राहु-केतु उपाय – नाग देवता की पूजा और तिल का दान करें।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि व्यक्ति ग्रहों के अनुसार उपाय करता है, तो जन्मजात नेतृत्व क्षमता और अधिक प्रभावशाली बनती है।

कुंडली में नेतृत्व क्षमता केवल स्वभाव और मेहनत का परिणाम नहीं होती, बल्कि ग्रहों और उनके योगों का भी गहरा प्रभाव होता है। सूर्य, मंगल, बृहस्पति, बुध और शनि जैसे ग्रह व्यक्ति को साहसी, बुद्धिमान, नैतिक और अनुशासित बनाते हैं। राहु-केतु की छाया प्रभावों को समझकर उचित उपाय करने पर व्यक्ति विशिष्ट और प्रभावशाली नेता बन सकता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि कुंडली का सही अध्ययन और ग्रहों के अनुसार उपाय व्यक्ति की जन्मजात नेतृत्व क्षमता को पूर्णता तक विकसित कर सकते हैं। जब ग्रह अनुकूल होते हैं, तब व्यक्ति समाज, संगठन और व्यवसाय में स्थायी और प्रभावशाली नेतृत्व कर सकता है।

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कुंडली में नौकरी बदलने या प्रमोशन के योग कैसे पहचानें?

कुंडली में नौकरी बदलने या प्रमोशन के योग कैसे पहचानें?

कुंडली में नौकरी बदलने या प्रमोशन के योग कैसे पहचानें?

हर व्यक्ति के जीवन में करियर या नौकरी एक महत्वपूर्ण आधार होता है। कुछ लोग अपने करियर में स्थिरता चाहते हैं, जबकि कुछ को लगातार बदलाव और नई चुनौतियाँ पसंद होती हैं। किसी व्यक्ति को समय-समय पर नौकरी बदलने का अवसर मिलता है, जबकि किसी को लंबे समय तक एक ही पद पर रहना पड़ता है। कई बार प्रमोशन या उन्नति का समय आने के बाद भी अवसर हाथ से निकल जाते हैं। ऐसे सभी घटनाक्रम केवल मेहनत या योग्यता से ही नहीं, बल्कि ग्रहों की दशा और योगों से भी प्रभावित होते हैं। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, जन्म कुंडली में नौकरी परिवर्तन, प्रमोशन और करियर उन्नति के योग स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, यदि कुंडली को सही ढंग से विश्लेषित किया जाए।

करियर से जुड़े भाव

कुंडली में करियर और प्रोफेशन से संबंधित तीन मुख्य भाव होते हैं — दशम भाव (10th house), षष्ठ भाव (6th house) और एकादश भाव (11th house)
दशम भाव व्यक्ति की नौकरी, पेशा, और समाज में प्रतिष्ठा को दर्शाता है। षष्ठ भाव प्रतियोगिता, संघर्ष और कार्यस्थल की स्थिति बताता है। वहीं, एकादश भाव आय, प्रमोशन और लाभ से संबंधित होता है।

यदि इन तीनों भावों के स्वामी मजबूत हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि प्राप्त कर रहे हों, तो व्यक्ति को अपने करियर में निरंतर उन्नति मिलती है। लेकिन यदि इन भावों में अशुभ ग्रह जैसे शनि, राहु या केतु का नकारात्मक प्रभाव हो, तो व्यक्ति को नौकरी में अस्थिरता, परिवर्तन या बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

दशम भाव – करियर का मुख्य भाव

दशम भाव को “कर्मस्थान” कहा गया है, क्योंकि यह व्यक्ति के कर्म, व्यवसाय, पद और प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है। जब दशम भाव मजबूत होता है, व्यक्ति को अच्छे अवसर और प्रमोशन मिलते हैं।
यदि दशम भाव का स्वामी शुभ ग्रह जैसे सूर्य, बृहस्पति या बुध के साथ स्थित हो, तो व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है। वहीं, दशम भाव का स्वामी यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में चला जाए, तो नौकरी में अस्थिरता या बार-बार परिवर्तन के योग बनते हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि दशम भाव में सूर्य, मंगल या बृहस्पति मजबूत स्थिति में हों, तो व्यक्ति अपनी मेहनत से उच्च पदों तक पहुंचता है। लेकिन यदि दशम भाव राहु या केतु से प्रभावित हो, तो अचानक नौकरी परिवर्तन या अप्रत्याशित बदलाव की स्थिति बनती है।

षष्ठ भाव और कार्यस्थल की स्थिति

षष्ठ भाव व्यक्ति के कार्यस्थल, सहकर्मियों और प्रतियोगिता से जुड़ा होता है। यह भाव यह भी बताता है कि व्यक्ति को नौकरी में संघर्ष कैसा रहेगा।
यदि षष्ठ भाव में मंगल या शनि जैसे ग्रह हों, तो व्यक्ति को मेहनत के बाद सफलता मिलती है, लेकिन कार्यस्थल पर मतभेद या विवाद की संभावना रहती है।
बुध का प्रभाव इस भाव पर अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति को व्यावहारिक और संवाद कुशल बनाता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि षष्ठ भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि व्यक्ति को प्रतिस्पर्धा में विजयी बनाती है, जबकि अशुभ ग्रह बार-बार नौकरी बदलने के संकेत देते हैं। यदि इस भाव पर राहु या केतु की दृष्टि हो, तो व्यक्ति को कार्यस्थल पर अप्रत्याशित परिवर्तन या ट्रांसफर का सामना करना पड़ता है।

एकादश भाव और प्रमोशन के योग

एकादश भाव लाभ और आय का भाव होता है। जब यह भाव मजबूत होता है, व्यक्ति को प्रमोशन, वेतन वृद्धि और नए अवसर प्राप्त होते हैं।
यदि एकादश भाव का स्वामी दशम भाव से संबंधित हो, तो करियर में तेजी से उन्नति होती है।
बृहस्पति और शुक्र की दृष्टि इस भाव पर हो, तो व्यक्ति को उच्च पद, सामाजिक सम्मान और स्थिर आय प्राप्त होती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि दशम और एकादश भाव के बीच शुभ संबंध करियर ग्रोथ के प्रमुख संकेत होते हैं। वहीं, जब इन भावों के स्वामी विपरीत ग्रहों से प्रभावित हों, तो प्रमोशन में देरी या बाधाएँ आती हैं।

ग्रहों की भूमिका करियर परिवर्तन में

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रत्येक ग्रह व्यक्ति के करियर पर विशेष प्रभाव डालता है।

सूर्य – यह सरकारी नौकरी, नेतृत्व और पद प्रतिष्ठा का प्रतीक है। जब सूर्य मजबूत होता है, व्यक्ति को ऊंचा पद प्राप्त होता है। लेकिन सूर्य कमजोर हो तो अधिकारी वर्ग से टकराव या पद से अस्थिरता की संभावना रहती है।

चंद्रमा – चंद्रमा की स्थिति मनोवैज्ञानिक स्थिरता दर्शाती है। यदि यह बारहवें या छठे भाव में चला जाए, तो व्यक्ति बार-बार नौकरी बदलने के निर्णय लेता है।

मंगल – मंगल ऊर्जावान और सक्रिय ग्रह है। जब यह दशम भाव या लग्न में शुभ स्थिति में हो, व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है और जल्द प्रमोशन पाता है। लेकिन राहु या केतु के साथ युति होने पर अचानक नौकरी परिवर्तन के योग बनते हैं।

बुध – यह संचार और बुद्धिमत्ता का ग्रह है। इसकी शुभ स्थिति व्यक्ति को व्यापारिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में सफलता दिलाती है। लेकिन कमजोर बुध करियर में अस्थिरता और गलत निर्णय का कारण बनता है।

बृहस्पति – यह गुरु ग्रह करियर में स्थिरता और उन्नति प्रदान करता है। जब यह दशम या एकादश भाव पर दृष्टि डालता है, व्यक्ति को सम्मान, उच्च पद और स्थायी सफलता मिलती है।

शुक्र – यह सृजनात्मक क्षेत्रों और कला से जुड़ा ग्रह है। शुक्र की शुभ स्थिति व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व और रचनात्मक करियर में सफलता देती है।

शनि – शनि परिश्रम और अनुशासन का प्रतीक है। यह व्यक्ति को धीरे-धीरे लेकिन स्थायी सफलता दिलाता है। कमजोर शनि देरी लाता है, लेकिन मजबूत शनि व्यक्ति को मेहनती और सफल बनाता है।

राहु और केतु – ये छाया ग्रह करियर में अचानक बदलाव के कारक हैं। राहु विदेश संबंधी कार्यों और अप्रत्याशित अवसरों को दर्शाता है, जबकि केतु आत्मचिंतन और करियर में असमंजस का कारण बनता है।

दशा और गोचर का प्रभाव

केवल ग्रहों की स्थिति ही नहीं, बल्कि उनकी दशा (महादशा और अंतर्दशा) भी नौकरी परिवर्तन या प्रमोशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  • जब दशम भाव का स्वामी या उससे संबंधित ग्रह की दशा चल रही होती है, तब व्यक्ति को नए अवसर प्राप्त होते हैं।

  • राहु या शनि की दशा में अप्रत्याशित परिवर्तन या ट्रांसफर होते हैं।

  • बृहस्पति या शुक्र की दशा व्यक्ति को प्रमोशन और पदोन्नति के रूप में फल देती है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि गोचर के समय यदि बृहस्पति दशम भाव से गुजर रहा हो या उस पर दृष्टि डाल रहा हो, तो यह करियर में सकारात्मक परिवर्तन का संकेत होता है।

नौकरी में स्थिरता के उपाय

  • सूर्य को मजबूत करें — रोज सुबह सूर्य को अर्घ्य दें और रविवार का व्रत रखें।

  • शनि की शांति के लिए — शनिवार को तेल का दीपक जलाएं और गरीबों को दान दें।
  • बुध के लिए उपाय — बुधवार को हरे वस्त्र पहनें और तुलसी को जल चढ़ाएं।
  • बृहस्पति की कृपा के लिए — गुरुवार को पीले वस्त्र पहनें, चने की दाल दान करें।
  • राहु-केतु दोष निवारण — नाग देवता की पूजा करें और शनिवार को तिल का दान करें।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि व्यक्ति अपने ग्रहों के अनुसार उपाय करता है, तो करियर की रुकावटें दूर होकर सफलता और प्रमोशन के योग प्रबल हो जाते हैं।

कुंडली में नौकरी बदलने या प्रमोशन के योग केवल भाग्य या मेहनत से नहीं, बल्कि ग्रहों की स्थिति, दशा और भावों की शक्ति पर निर्भर करते हैं। जब दशम, षष्ठ और एकादश भाव शुभ ग्रहों से प्रभावित होते हैं, तब व्यक्ति अपने करियर में निरंतर आगे बढ़ता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि सही समय पर कुंडली का विश्लेषण और उचित ज्योतिषीय उपाय व्यक्ति को नौकरी में स्थिरता, प्रमोशन और सफलता की राह दिखाते हैं। करियर केवल मेहनत का नहीं, बल्कि ग्रहों के संतुलन का भी परिणाम है। जब ग्रह अनुकूल होते हैं, तब व्यक्ति के प्रयासों को सही दिशा मिलती है और जीवन में सफलता निश्चित होती है।

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कुंडली में प्रेम और विवाह के योग कैसे पहचानें?

कुंडली में प्रेम और विवाह के योग कैसे पहचानें?

प्रेम और विवाह हर व्यक्ति के जीवन का सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण अध्याय होते हैं। ये केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि आत्माओं का संबंध होते हैं जो ग्रहों और नक्षत्रों द्वारा नियोजित होता है। कई लोग अपने जीवनसाथी से जल्दी मिल जाते हैं, जबकि कुछ को देर लगती है या बार-बार असफल संबंधों का सामना करना पड़ता है। यह सब केवल भाग्य या परिस्थिति का परिणाम नहीं होता, बल्कि इसके पीछे ग्रहों की स्थिति और योगों का गहरा संबंध होता है। इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, प्रेम और विवाह के योग को समझने के लिए व्यक्ति की जन्म कुंडली का गहराई से अध्ययन करना आवश्यक होता है।

कुंडली में प्रेम और विवाह का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की कुंडली  में पंचम भाव (5th house) और सप्तम भाव (7th house) प्रेम और विवाह से संबंधित प्रमुख भाव माने जाते हैं। पंचम भाव रोमांस, आकर्षण, और प्रेम संबंधों को दर्शाता है, जबकि सप्तम भाव वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी और दांपत्य सुख का प्रतीक है। जब ये दोनों भाव शुभ ग्रहों से युक्त होते हैं या शुभ दृष्टि में होते हैं, तब प्रेम और विवाह के अच्छे योग बनते हैं।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि जिन व्यक्तियों की कुंडली  में इन भावों के स्वामी मजबूत होते हैं, वे प्रेम में सफल होते हैं और विवाह के बाद भी स्थिर, सुखी जीवन व्यतीत करते हैं। इसके विपरीत, यदि इन भावों में अशुभ ग्रहों की स्थिति हो या राहु-केतु, शनि, मंगल जैसे ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रेम और विवाह में रुकावटें आती हैं।

पंचम भाव और प्रेम के योग

कुंडली  का पंचम भाव व्यक्ति के दिल से जुड़ा होता है। यह भाव जितना मजबूत होगा, व्यक्ति उतना ही भावनात्मक और प्रेमपूर्ण स्वभाव का होगा। यदि पंचम भाव में शुक्र, चंद्रमा, या बुध जैसे ग्रह उपस्थित हों या इन ग्रहों की शुभ दृष्टि हो, तो व्यक्ति को सच्चा प्रेम प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।

उदाहरण के लिए:

  • शुक्र पंचम भाव में होने पर व्यक्ति आकर्षक, रोमांटिक और प्रेम में भाग्यशाली होता है।

  • चंद्रमा इस भाव में होने पर व्यक्ति को भावनात्मक रूप से संवेदनशील और प्रेमपूर्ण साथी मिलता है।

  • बुध की स्थिति शुभ हो तो व्यक्ति अपने प्रेम संबंधों में संवाद और समझ को महत्व देता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, यदि पंचम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो और राहु-केतु या शनि का प्रभाव न हो, तो ऐसे लोग अपने प्रेम संबंधों को सफल विवाह में परिवर्तित कर लेते हैं।

सप्तम भाव और विवाह के योग

सप्तम भाव (7th house) कुंडली का विवाह भाव कहलाता है। यह व्यक्ति के जीवनसाथी, वैवाहिक जीवन और दांपत्य सुख की स्थिति को दर्शाता है। इस भाव में स्थित ग्रह, इसकी दृष्टि और भाव का स्वामी व्यक्ति के विवाह की प्रकृति को तय करते हैं।

  • यदि सप्तम भाव का स्वामी शुभ ग्रह जैसे शुक्र, बृहस्पति या चंद्रमा के साथ हो, तो विवाह में सुख और स्थिरता मिलती है।

  • यदि मंगल, राहु, शनि जैसे ग्रह इस भाव में हों, तो विवाह में विलंब या असहमति की स्थिति बन सकती है।

  • बृहस्पति का सप्तम भाव पर दृष्टि डालना विशेष रूप से शुभ माना जाता है, क्योंकि यह विवाह को स्थिर और सफल बनाता है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि जिनकी कुंडली  में सप्तम भाव मजबूत होता है, उन्हें योग्य और समझदार जीवनसाथी की प्राप्ति होती है, जो जीवनभर सहयोगी बनकर साथ चलता है।

प्रेम विवाह और अरेंज मैरिज के ज्योतिषीय संकेत

प्रेम विवाह के योग और अरेंज मैरिज के योग दोनों कुंडली में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

  • प्रेम विवाह के योग तब बनते हैं जब पंचम भाव और सप्तम भाव के बीच संबंध हो, या शुक्र, मंगल और राहु का प्रभाव साथ आए।

  • यदि व्यक्ति की कुंडली  में पंचम भाव का स्वामी सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तम भाव का स्वामी पंचम भाव में चला जाए, तो यह प्रेम विवाह का स्पष्ट संकेत होता है।

  • वहीं, अरेंज मैरिज के योग तब बनते हैं जब विवाह भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो लेकिन पंचम भाव से संबंध न बने।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि राहु का प्रभाव कई बार सामाजिक बंधनों को तोड़ता है, जिसके कारण प्रेम विवाह या अंतरजातीय विवाह के योग मजबूत हो जाते हैं। वहीं मंगल की स्थिति व्यक्ति को अपने प्रेम के लिए दृढ़ बनाती है।

विलंबित विवाह के कारण

कई बार विवाह में अनावश्यक विलंब होता है, जबकि व्यक्ति विवाह के योग्य होता है। इसके पीछे ग्रहों की भूमिका होती है।

  • यदि शनि सप्तम भाव में हो या इसकी दृष्टि उस भाव पर हो, तो विवाह में विलंब होता है।

  • मंगल दोष (मांगलिक योग) होने पर भी विवाह में बाधाएँ आती हैं।

  • केतु की स्थिति विवाह संबंधों में अस्थिरता पैदा कर सकती है।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी के अनुसार, जब दशा-अंतर्दशा में विवाह संबंधी ग्रह सक्रिय नहीं होते, तब विवाह का समय विलंबित हो जाता है। ऐसे में शुभ ग्रहों की शक्ति बढ़ाने के लिए उपासना और उपाय आवश्यक होते हैं।

सफल विवाह के लिए ग्रहों की अनुकूलता

विवाह की सफलता केवल प्रेम पर निर्भर नहीं करती, बल्कि ग्रहों की अनुकूलता पर भी आधारित होती है। गुण मिलान (कुंडली मिलान) के समय वर-वधू की कुंडलियों के ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है।

  • यदि नाड़ी दोष या भकूट दोष उपस्थित हो, तो विवाह में मतभेद की संभावना रहती है।

  • यदि ग्रह मिलान शुभ हो, तो दांपत्य जीवन सुखद रहता है।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी कहते हैं कि विवाह से पहले कुंडली  मिलान करवाना अनिवार्य है, क्योंकि यह जीवनभर के सुख-दुख को प्रभावित करता है।

प्रेम और विवाह के योग को मजबूत करने के उपाय

  • शुक्र को मजबूत करें — शुक्रवार को माता लक्ष्मी की पूजा करें, सफेद वस्त्र पहनें और सुगंधित दान करें।

  • चंद्रमा के लिए उपाय — सोमवार को दूध का दान करें, शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।

  • मंगल दोष शांति — हनुमान जी की उपासना करें, मंगलवार को लाल वस्त्र या तांबा दान करें।

  • राहु-केतु शांति — अमावस्या को नाग देवता की पूजा करें और तिल-तेल का दीपक जलाएं।

  • विवाह योग सक्रिय करने के लिए मंत्र — “ॐ नमः भगवते वासुदेवाय नमः” या “ॐ शुक्राय नमः” का नियमित जाप करें।

भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी बताते हैं कि यदि व्यक्ति इन उपायों को श्रद्धा से करे और अपने ग्रहों को संतुलित रखे, तो जीवन में प्रेम और विवाह दोनों का सुख प्राप्त होता है।

कुंडली में प्रेम और विवाह के योग व्यक्ति के जीवन के भावनात्मक और सामाजिक पहलू को दर्शाते हैं। यदि पंचम और सप्तम भाव शुभ ग्रहों से प्रभावित हों, तो प्रेम और विवाह दोनों सफल होते हैं। वहीं, अशुभ ग्रहों की स्थिति या दोष होने पर संबंधों में रुकावटें आती हैं।

इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी मनोज साहू जी का मानना है कि सही समय पर ग्रहों की दशा को समझना,कुंडली  का विश्लेषण करवाना और उचित उपाय अपनाना प्रेम और विवाह दोनों को स्थिर और सुखद बनाता है। ज्योतिष केवल भविष्य बताने का विज्ञान नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने का साधन है। जब व्यक्ति अपने ग्रहों के संकेतों को समझता है, तो प्रेम और विवाह दोनों जीवन में सुख और संतोष का माध्यम बन जाते हैं।

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