ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें?
भारतीय वैदिक ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों की स्थिति और उनके संयोगों का मनुष्य के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब दो विशेष ग्रह – राहु और केतु – सूर्य या चंद्रमा के साथ किसी विशेष योग में आ जाते हैं, तो उसे ग्रहण दोष कहा जाता है। यह योग विशेष रूप से जन्म कुंडली में सूर्य या चंद्रमा पर राहु या केतु की युति (संयोग) के कारण बनता है।
इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें?, इसके ज्योतिषीय अर्थ, प्रभाव, संकेत, और इसके निवारण हेतु प्रभावी उपाय।
ग्रहण दोष क्या होता है?
"ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें?" – यह प्रश्न हर उस व्यक्ति के मन में उठता है जिसकी कुंडली में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु या केतु युति में हों। जब राहु या केतु सूर्य या चंद्रमा के साथ एक ही भाव में होते हैं, तो वे एक प्रकार की छाया डालते हैं, जिससे सूर्य या चंद्रमा की सकारात्मक ऊर्जा दब जाती है।
ग्रहण दोष मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:
सूर्य ग्रहण दोष – जब राहु या केतु का सूर्य के साथ संयोग हो।
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चंद्र ग्रहण दोष – जब राहु या केतु चंद्रमा के साथ संयोग में हों।
इन दोषों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव, आत्मविश्वास में कमी, स्वास्थ्य समस्याएं, करियर रुकावटें, पारिवारिक अशांति और आध्यात्मिक उलझनों के रूप में देखा जा सकता है।
ग्रहण दोष के लक्षण
यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि "ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें?" जानने से पहले हमें इसके लक्षण पहचानना चाहिए। यदि आपकी कुंडली में यह दोष हो तो निम्न प्रकार के संकेत दिख सकते हैं:
स्वभाव में चिड़चिड़ापन या अचानक क्रोध आना।
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नकारात्मक सोच और आत्मविश्वास की कमी।
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स्वास्थ्य में बार-बार गिरावट, खासकर मानसिक रोग या नेत्र संबंधी समस्याएं।
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करियर में बार-बार रुकावटें, प्रमोशन में बाधा।
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शत्रु वृद्धि या कानूनी विवाद।
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पारिवारिक जीवन में तनाव या वैवाहिक समस्याएं।
ग्रहण दोष का मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रभाव
ग्रहण दोष केवल भौतिक समस्याओं तक सीमित नहीं रहता। यह व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा, मानसिक स्थिति और आध्यात्मिक पथ को भी प्रभावित करता है। कई बार ऐसा देखा गया है कि जिनकी कुंडली में सूर्य ग्रहण दोष होता है वे आत्म-आलोचना में जीते हैं, जबकि चंद्र ग्रहण दोष वाले लोग भावनात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।
ग्रहण दोष के कारण
ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें? समझने के लिए हमें इसके कारणों की गहराई में जाना होगा। राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। ये ग्रह भले ही खगोलीय दृष्टि से अस्तित्व में न हों, लेकिन ज्योतिष में इनका महत्व अत्यधिक है।
पिछले जन्म के कर्म – वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यह दोष व्यक्ति के पूर्व जन्म के अधूरे या गलत कर्मों का परिणाम हो सकता है।
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असंतुलित पंचमहाभूत ऊर्जा – सूर्य अग्नि तत्व का प्रतीक है और चंद्रमा जल तत्व का। जब इन पर राहु/केतु का प्रभाव पड़ता है, तो यह पंचमहाभूत संतुलन को बिगाड़ देता है।
ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें? – उपाय
अब जब हमने यह समझ लिया कि ग्रहण दोष क्या होता है, तो अगला स्वाभाविक प्रश्न है कि इससे बचने या इसके प्रभाव को कम करने के लिए क्या किया जाए।
ग्रह शांति पूजा करें
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सूर्य या चंद्र ग्रहण दोष के शमन के लिए ग्रह शांति यज्ञ करवाना एक प्रभावशाली उपाय है।
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इस यज्ञ में नवग्रहों का पूजन कर विशेष रूप से राहु और केतु को प्रसन्न किया जाता है।
मंत्र जाप करें
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राहु मंत्र: "ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः"
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केतु मंत्र: "ॐ स्ट्रां स्त्रीं स्ट्रौं सः केतवे नमः"
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सूर्य मंत्र: "ॐ घृणिः सूर्याय नमः"
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चंद्र मंत्र: "ॐ सोम सोमाय नमः"
प्रत्येक मंत्र का कम से कम 108 बार जाप रोज करें, विशेष रूप से ग्रहण काल में।
अन्नदान व वस्त्रदान करें
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राहु और केतु से संबंधित दोष के निवारण के लिए काले वस्त्र, तिल, लोहे के बर्तन, नीला फूल, और नीलम आदि का दान शनिवार को करें।
गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन दें
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राहु और केतु का संबंध प्रेत और अधर ऊर्जा से होता है। इनके दोष को कम करने के लिए रोज या शनिवार को गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन देना शुभ माना गया है।
ग्रहण के दिन विशेष सावधानियां बरतें
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ग्रहण काल में कोई भी शुभ कार्य न करें।
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भोजन, यात्रा, निवेश या महत्वपूर्ण निर्णय ग्रहण के समय न लें।
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स्नान, जाप और ध्यान करें और ग्रहण के बाद स्नान करके शुद्ध हो जाएं।
ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें? – बाल्यावस्था में असर
यदि किसी बच्चे की कुंडली में यह दोष हो, तो माता-पिता को विशेष ध्यान देना चाहिए:
बच्चे को नियमित सूर्य नमस्कार कराएं।
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उसे गीता, रामायण जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों की कहानियां सुनाएं।
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मानसिक विकास के लिए ध्यान और योग की शिक्षा दें।
कालसर्प योग और ग्रहण दोष में अंतर
कई बार लोग ग्रहण दोष और कालसर्प योग को एक जैसा समझ लेते हैं, परंतु ये भिन्न होते हैं।
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कालसर्प योग तब बनता है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आते हैं।
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ग्रहण दोष विशेषतः सूर्य या चंद्रमा पर राहु/केतु की युति के कारण बनता है।
दोनों के प्रभाव अलग-अलग होते हैं और इनका निवारण भी भिन्न होता है।
ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें? – वैदिक ग्रंथों में उल्लेख
वैदिक ग्रंथों और पुराणों में कई स्थानों पर ग्रहण दोष के प्रभाव और इससे बचाव के उपाय बताए गए हैं। स्कंद पुराण, नारद संहिता, तथा भविष्य पुराण में इस पर विस्तृत विवरण मिलता है।
विशेषत: भगवान शिव की पूजा को ग्रहण दोष के निवारण का सर्वोत्तम उपाय माना गया है।
ज्योतिष परामर्श क्यों आवश्यक है?
यदि आपकी कुंडली में ग्रहण दोष है, तो बिना विशेषज्ञ ज्योतिषी की सलाह के कोई बड़ा निर्णय न लें। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति अलग होती है, अतः निवारण भी व्यक्तिगत होगा।
कभी-कभी ग्रहण दोष केवल नाम मात्र का होता है और अधिक प्रभाव नहीं डालता, जबकि कुछ मामलों में यह जीवन की दिशा ही बदल सकता है।
इस विस्तृत चर्चा के माध्यम से अब आप यह भलीभांति समझ चुके होंगे कि ग्रहण दोष क्या होता है और इससे कैसे बचें? यह दोष व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन पर प्रभाव डालता है। इसके समाधान हेतु वैदिक उपाय, मंत्र जाप, दान और विशेष पूजा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं।
यदि आप भी जीवन में अनचाही बाधाओं, असफलता या मानसिक असंतुलन का अनुभव कर रहे हैं, तो कुंडली का विश्लेषण कराएं और यदि ग्रहण दोष हो, तो उपयुक्त उपाय अपनाकर जीवन को शांतिपूर्ण और उन्नत बनाएं।
अनीता वर्मा – राजबाड़ा, इंदौर
"मेरी बेटी की शादी में बार-बार अड़चनें आ रही थीं। एस्ट्रोलॉजर साहू जी (इंदौर के प्रसिद्ध ज्योतिषी) से मिलने के बाद पता चला कि कुंडली में ग्रहण दोष है – राहु और चंद्रमा एक ही भाव में थे। उन्होंने कुछ विशेष उपाय बताए जैसे ‘दुर्गा सप्तशती पाठ’, ग्रहण के दिन व्रत और शिवलिंग पर जलाभिषेक। मैंने ये सब राजबाड़ा स्थित शिव मंदिर में नियमित रूप से करना शुरू किया और तीन महीने में स्थितियाँ बदलने लगीं। अब शादी की बात आगे बढ़ रही है।"
कमलेश जैन – स्कीम नंबर 140, इंदौर
"मेरे स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी और मानसिक तनाव बना रहता था। एस्ट्रोलॉजर साहू जी से कुंडली मिलवाने पर उन्होंने बताया कि सूर्य पर राहु की छाया है – जिससे ग्रहण दोष बना हुआ है। उन्होंने रविवार को विशेष सूर्य पूजा, ताम्रपात्र में जल अर्पण और हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने की सलाह दी। मैंने स्कीम 140 के पास स्थित छोटे हनुमान मंदिर में ये उपाय किए और कुछ ही हफ्तों में सुधार महसूस हुआ।"